यह रचना मैंने गत वर्ष पोस्ट की थी , श्री विनोद पंत जी के आग्रह पर लिखी थी , बहुत मार्मिक बन पड़ी , मेरी कुछ रचनाओं में जो स्वयं मुझे पसंद हैं यह उनमें से एक है , जिन्होंने नहीं पढ़ी है शायद वे इसका आनद उठायें
पुन्तुरि
गोविन्द वल्लभ ज्यू इंटर कॉलेजक अंग्रेजी और गणितक मास्टर भै , भौते कठोर स्वाभाव भै , पर मास्टर गज़बक भै , जैल उनन थें पढ़ लि, जांणौ वीक जीवन सुधरि गै । मास्टर ज्यूक ठुल च्योल ले भौत कुशाग्र बुद्धि वाल भै , हाई स्कूल और इंटर में पुर जिल्ल में टॉप करी भै , अब अघिल कै पढ़ाई कारन हूँ जिल्ल में क्वे स्कूल नि भै । एतुक होशियार च्यालेकि जिंदगी खराब है जालि कबेर ऊँ उदासी रुनेर भै , अब उनर किस्मत कई जाओ या च्यालैकि , उनर पढ़ाई एक शिष्य धर्मानंद , जो लखनऊ में पी सी एस अफसर छी , उन्हेंहूँ भेंट करण हूँ आई भै , बातचीत में वील गोविन्द वल्लभ ज्यूक हाल चाल पूछणक बाद नान्तिन्नक हाल पुंछिन त उनूल आपुंण पीड बते , धर्मानंद ज्यू गोविन्द वल्लभ ज्यू कनि अपूण बाब जस माननेर भै , उनर उपकार भै , त धर्मानंद ज्यू , मास्टर सैपक च्याल हरिदत्त कनि आपुंण दगड लखनऊ लि गै और वीक एड्मिसन वां विश्वविद्यालय में करै दे ।
हरिदत्त त उसीके होशियार भै , धर्मानंद ज्यू वीक बुद्धि देखिबेर प्रभावित छी , त, बी ए करण क बाद उनूंल हरि के आई ए एस परीक्षा में बिठै दे , और हरि पैल बखतै में सिलेक्ट है गे , और ट्रेनिंग करण लागि गै । धर्मनद ज्यूक ठुल भै पीताम्बर ज्यू सीनियर आई ए एस अफसर भै , उनर चेलि ममता ले सिलेक्ट हई भै और हरिदत्तक दगड ट्रेनिंग में भै , चेलि बेउण हैगे , पीताम्बर ज्यू कनि, हरिदत्त भल जोड़ दिखाई दे , उनलि धर्मानंदजयूक मार्फ़त बात चलाई त रिस्त पक्क है गे ।
भली कै ब्या ले हैगे , पीताम्बर ज्यूल मस्त दान दी , पर गोविन्दवल्लभ ज्यू के नि लिगै , विद्वान छी त समझ गईं कि ब्वैरि कान्वेंट स्कूलेकि पढ़ी छ , पहाड़ कभै देखी नि भै , त वां तैक मन नि लॉग , शकुन करणक लिजी , ब्वैरि गौं लाई , पर तिसर दिनै च्याल- ब्वैरि कंन लखनऊ पठै देछ । घर पण्डितान्जयूलि कतुकस्यूंण देखि भै , ब्वैरि आलि त यस करुन , उस करून , पर मोरक मुकुट बांध्यै रैगे ।
बाद में हरिदत्त इज -बाब कनि बुले लिगै , आलीशान कोठि मिलि भै लखनऊ में , नौकर चाकर , खानसामा सबै भै , पर बुड - बाडीनेकि आफत ऐ गे , गोविन्द वल्लभ ज्यू धोति बदल बेर खानेर भै और केवल पण्डितान्जयूक हाथक ! रस्या में कुकिंग टॉप भै, असज है जनेर भै , खानसामा क्रिश्चयन भै , द्वी दिन त जसी तसी कटि गै , तिसर दिन धर्मानंद ज्यूक वां खाणक न्यूत छी, बुड-बाडि , वां जाइ भै , रात डिनर टेबल में , खांण शुरू भै त ब्वैरिल हरी थें कै :
ममता : हरी डार्लिंग ! व्हाई युवर पैरेन्ट्स अार सो हिपोक्रेटस ?
हरि : व्हाट हैपेन्ड ?
ममता : यू नो ? जॉन ( खानसामा ) बता रहा था , दैट ओल्ड लेडी वाज कुकिंग हरसेल्फ , और उसको छूने से मना कर दिया , यार ! इट्स एम्बैरेशिंग , अगर जॉन नाराज हो गया और काम छोड़ गया तो , यू कांट फाइन्ड सच एन एफिशिएंट कुक !
हरि : ओह ! कम आन डार्लिंग , दे आर युअर फादर एंड मदर इन लाज , बियर विद देम ,यार वो हमेशा के लिए यहां नहीं रुक रहे
ममता : डार्लिंग ! प्लीज अंडरस्टैंड , ऐसी प्रिमिटिव सोच से बात नहीं बनेगी , आई एम नाट अगेस्ट दम , उनको ये अन्टचेबिलिटी अब छोड़ देनी चाहिए , एम आई रॉन्ग ?
हरि ( बात का पटाक्षेप करते हुए ) : ओ के ! आई विल मैनज
और दूसर दिन जब बुड - बाड़ी वापस आईं त गोविन्द वल्लभ ज्यू जाँणी कसि समझ गै कि कुछ गडबड मामूल छ , उनेल हरिदत्त थें के :
गोविन्द वल्लभ ज्यू : हरि ! च्यला ! आज हमर टिकट करै दे , भौत दिन है गईं घर छोड़ि ,
हरि : किले बाबू ! तस किले कूँणौंछा , के गलती है गे मैं थें ?
गोविन्द वल्लभ ज्यु : नै च्याला ! क्वे गलती नि करि त्वील और ब्वैरिल , बस अब गोर बाछनेकि याद ऊंनै , नानतिन जस पालि भै , निश्वासी गै हुनाल , फिर तेर नान भै ले आजि नानै भै , वीक भरौस एतुक ठुल गृहस्थी छोड़ी ऐ रयां , भगवान चालो फिर ऐ जून , अब त सार ले ऐ गे देश उनैकि
हरि नै ! नै ! कूँण में रैगे पर गोविन्द वल्लभ ज्यूल हद्द जसि हाण दे , और उ रात , बुड - बाड़ी पहाड़ हूं हिट दीं
कतुक साल बीति गे , नान भैक ब्या में एक दिनाक लिजी हरि घर आ , इज - बाब थें माफि मांगण लागि , बौज्यू दूरदर्शी भै , वीक मनोदशा समझनेर भै , उनैलि हरि कें समझै देछ ।
फिर चार पांच साल बाद गोविन्द वल्लभ ज्यू स्वर्ग सिधारी गै , नान ब्वेरि ले च्योल हुण में खत्म है गे , नान च्योल पगलि जस गै , घर बटि भाजि गै , वीक पत्ते नि लाग , पण्डितान्जयूक ख्वार बज़र जस पडिगे , नानू भौ कें रुवाक बातैली दूध पिऊँनेर भै , जसि-कसी पालि बुढ़ियैलि छोर-मूल्या ,
अापूण नान्तीनां में और काम में हरिदत्त एतुक व्यस्त हैगे , कि उ कभे घर नि जै सकि , पचास रूपैंक् मनीआर्डर हर महैंण घर भेज दिनेर भै , न कबै वील चिठ्ठी भेजि , न वील कबै पाई ।
हरिदत्तक पड़ौस में पाण्डेज्यु रनेर भै, पुलिस विभाग में डिप्टी एस पी भै , ऊ हरिदत्तक गौंक नजदीकक गौंक भै , उनर नौकर पहाड़ी छी , रत्ते ब्याँण उ नौकर हरिदत्तक घर पूजि, घंटी बजै , त हरिक नौकर एक पुन्तुरि लिबेर भितर ऐ , मेम सैप जिम जाईं भैन , हरि अखबार पदन में लागि छी , वील नौकर थें पूछौ ," कौन है ?"
नौकर : पांडे जी का नौकर है सर ! कह रहा था आज ही पहाड़ से लौटा है , एक सिला हुआ थैला लाया है !
हरी : दिखाओ !
नौकर पुन्तुरि लि बेर हरियाक सामुनि ठाड़ हैगे , हरियैली पुन्तुरि देखि , एक मैल कपड़ाक टुकुड कनि म्वाट काल धागैलि सिलि बेर पुन्तुरि बड़ाई भै , पत्त मेँ काल स्याहील लिखी भै " पं हरिदत्त जी को मिले " , हरियल नौकर थें कै ," देखो इसमें क्या है ? "
नौकर पुन्तुरि खोली बेर : सर ! इसमें ऊपर से कुछ ब्लैक बींस हैं , बाक़ी नीचे दबा हुआ है "
हरिदत्त : अच्छा देखो, इन बींस की दाल बनाने को कहो खानसामा से और अगर कुछ और हो तो उसको भी कुक करके लाने को कहो !
नौकर : सर ब्रेकफास्ट तो रेडी है , मैंम साहब आ जाएँ तो मैं सर्व कर दूँगा
हरिदत्त : मैं जितना कह रहा हूँ उतना करो ।
और नौकर न्हेगे , हरि अखबार पढ़न में लागि गै , आदु घंट बाद , खानसामा ट्रे में में द्धि मड़ुवाक रवाट , और अखोडैकी गिरी सजाई बेर ली ऐ
खानसामा : हेयर इज युअर ब्रेकफास्ट सर ! बड़ी मुश्किल से ये चपाती बना पाया हूँ , एण्ड सम वॉलनट्स सर ! , और सर देअर इज इ लैटर आल्सो हिडन बिलो आल द आइटम्स सर !
ट्रे बटी चिठ्ठी उठै बेर हरिदत्त पढ़न लागि ,
ऊँ श्री गणेशाय नाम : ग्राम देवताय नाम :, गोलू देवताए नाम:
" सिद्धी श्री सर्वोपमा योग्य श्री ६ पूज्य जेठ्बाज्यू और पूजनीया जेडजा के चरणतल पालनीय को नमस्कार और पैलागो, प्रथम जतन देह को करला तबै हमारि पालना होली , सब भै बैणिन कं पैलागो व् आशीर्वाद , अत्र कुशलं तत्रास्तु , याँ पन कुशल ठीक छू , आपूँ लोगनक लिजी भगवती थें प्रार्थना छु ।
( अघिल कै आम कुनै ) प्रिय च्याल हरि और ब्वैरी कण, म्योर आशीर्वाद और नानां कण ले खूब आशीष भै , कतुकै साल हैगई , त्वे चिठ्ठी लिखण में आज-भोल हैगे , मैंकण लेखण उनेर नि भै और गौ में क्वे कण फुर्सत ले नि भै , फिर आपुंण क्वीड़ ले कै - कै सामुण कईनेर भै ? अब जब यो छनु लेखन सीखि गै त , आज यो चिठ्ठी भेजण लागि ऱयूँ , त्योर काम ठीक चली रै हनोल, ब्वैरी ले नौकरी वालि भै त परेशानी हून हुनेल ।
आज चिठ्ठी लेखनक कारण यो छू कि जब तक तयार बाब छी त में के फिकर नि रूंछी , नान ब्वैरी ले छनुवाक हुन दिन ये कं छोड़ि गै , येक बाब वीक दू:ख में पगली जस गै और घर छोड़ी भाजि गै , कां छ कस छ क्वे पत्त नहान, जसी तसी यो छोर-मूल्या पालि मैल , आपुण खाई नि खाई पाली भै , के करूँ वंशक अंश भै , अब च्याला में भौतै बुडी गयूं ,त्यार बाब ज्यूँ हुना त येक पढ़ाई देखन , होशियार त यो तेरे जस भै, पर क्वे देखनीं नि भै, घरक सब काम योई करनेर भै , स्कूल ले जानेर भै , परार साल त्यार माम एक गोरु दी गैछी , थवाड़ धिनालि जस है जाछि , अब गोर ले छण - मण करैछ, मण द्वी मण दूध दिनेरै भै , धान बोइन त ऐल साल अत्ति डाल पडि गै , सब ख़तम है गै !
छनु कें अब में नै थाई सकनूँ , गौंक बिरादर हर बखत खिजै दिनी , यो आपुण इज बाबनक बार में मैथे पूछूं अब में के बतू, गौ वाल एके त्यार लिजी ले खिजूनी , यो घर ऐ बेर मैं थें कजी करूँ , के कूँ ? मैं रान हूँ त काल ले हरै गौछ ( आम कूँणै ) च्याला नक जन मानिए पर ये केन आपुण दगड लि जाने त यो ले मैंस बणी जान , म्योर के छ कबख्तै आँख निमि जाल त यो के करल , ? यो याँ नि ले होलो त बिरादर मैं कनि फुकी दयाल, ततुक कमाई त्यार बाबुलि करी भै , क्वे न क्वे किरी ले करि द्योल ( आम कुनै ) बस तु एकनि लिजा बेर मैंस बने दे त मैं भली कै मरि सकुन , त्यार घर में एक कुण में खेती रौल , सिध छ , तेरि सेवा ले करल , त्योर भतीज भै त अघाण , छोर -मुल्या !
च्यला , नानछना तकैं जे भल लांगछी ,ऊ भेजण लागि ऱयूँ , थ्वाद मड़ुवक् पिस्यु , खाज , मणि भट - गहत , भांग, अखोड़ एक भुड गडेरिक छ , यो तां नि हुन बल , खै लिये , भ्यार खितण होलो त पाण्डे ज्यूक नौकर कें दि दिये , बर्बाद जन करिए भागी ! बड जतन करि उपजाई भै ।
तेरि अभागि इज ! ( दस्खत आमा की तरफ से आपका आज्ञाकारी )
जस -जस चिठ्ठी पढ़नेर भै हरियाक आँखेन बटी आँसुनैकि तौड़ बगण लागि " ऊँ ! ऊँ !! करि बेर डाड हालण बैठ, नौकर चाकर हकबकाई गै , एक नौकरैल, जिम में फोन करि मेमसैप थें कै , तब तक हरिदत्त चम्म उठि बेर धिंगाड़ बदल बेर ड्राइवर ली बेर जाने रौछ, नौकर थें कै गै कि मेम साहब से कह देना कि साहब अचानक पहाड़ को चले गए हैं ।
कुमाउनीं व्यथा - कथा -- तरदा