Friday, 3 July 2015

 हिलल - हिलल भैंसिया पानी में 

घर से बाहर निकला ही था कि राम सुमेर भिटा  गए, खांटी बनारसी, अलमस्त किसी बात की परवाह न करने वाले , मिलते ही तपाक से मेरे पीठ पर धौल जमाते हुए बोले  " का हो पंतजी  ? काहे निहुरि - निहरि  के चलत हव्वा  ? सुने नहीं है का ? अब साहब कै  मुर्गिया हेराय गइल  बा !

मैं : कौन साहब और कैसी मुर्गिया  ? 

रामसुमेर : अरे ! थाना चलिहौ मर्दवा , कुल नौटंकी हियँ पूछी लेहो , चलो कुछ मज़मा तुमहूँ देखि लियो 

मैं : पर राम सुमेर भैय्या  ! कुछ बैकग्राउंड तौ  बताओ  ! 

रामसुमेर : हुवां बड़का चौराहे पर बड़ी जुगाड़ से ड्यूटी लगवावा रहा , संझा तक , बाबा की कृपा से पूरे दिन का राशन पानी, साग सब्जी , लड़िकन की फीस किताब वर्दी , रतिया के आधा किलो दूध , सब का बढ़िया हिसाब किताब रहा , मुला ऊ गजेन्दरवा  पचा नहीं पा रहा , अब ऊ चाहत है यह ड्यूटी , त  ऊ  छानबीन में आपण टांग  अडाय  रहा  है,  स्पेसल दरोगा जॉन मुम्बई से आवा है , वहॉ कुछ चिढ़ा है 

मैं : पर क्यों ? 

रामसुमेर : जब साहेब के भैंसिया  हराय रहल , तौ ई  सारे हमका मज़बूर कई दिहिन एफ, आई , आर  लिखावे  मां , कहीं कि लिखो कि तोहरे चौराहे से भैंसिया जात रही , तुमने देखा है पर चौराहा संभालने की वज़ह से तुम और कार्रवाई नहीं कर सके , नहीं लिखोगे तो चौराहे  से तुम्हारी ड्यूटी बदल कर ऑफिस से अटैच कर दिया जाएगा , खिलाते रहना दरोगा और दीवान को समोसे अपनी जेब से ! 

मैं : पर ऐसी दादागर्दी किस लिए ?

रामसुमेर : भैया ! चार पैसा सबका नीक लागत हैं , दिन भरे माँ जितना कमाओ , बारह आना " ऊपर" के नाम पर छिन  जात  हैं , पर जउन चवन्नी हमारे पल्ले पढ़त है भैया , वही मां गुज़रा करेक  पढ़त है , अब चलो ज्यादा इन्क्वायरी न करो महकमे के काम मां , तुम बाहर बेंच पर बैठे रह्यो , और गौर से बात्तचीत्त सुन्यो 

थाना पहुँच कर रामसुमेर ने दरोगा जी  को जोरदार सैल्यूट मारा , " जैहिंद सर ! कांस्टेबल रामसुमेर रिपोर्टिंग सर ! , और हाज़िरी रजिस्टर में दस्तखत कर दिए 

दरोगा जी रामसुमेर की इस अदा पर गदगद  होकर बोले " कल शाम की आपकी रिपोर्टिंग सही पाई गई, और सब बराबर है , आज ड्यूटी से पहले मुम्बई क्राइम ब्रांच के स्पेसल दरोगा आपसे क्रास - क्वेश्चन करेंगे, बड़ी होशियारी से जवाब देना और थाने की इज़्ज़त रखना "

रामसुमेर : फिर सैल्यूट मारते  हुए  : हुकुम सर ! 

और तेज कदमों से बगल के कमरे की तरफ चले गए , जिसकी खिड़की बाहर  बरामदे में बेंच पर बैठे  फर्यादियों की और खुलती थी , जहां अंदर की बात तो सुनाई देती थी , पर जिसे महामके की भाषा आती हो  तर्जुमा कर सकता था, बाक़ी लोगों के लिए ये सब सरकारी रूटीन काम था 

रामसुमेर ने मुम्बई के दरोगा जी को भी उसी तरह अभिवादव किया , उन्होंने  बैठने का इशारा किया , फिर बोले :

दारोगा : हां तो टाइम क्या था ? 

रामसुमेर : टाइम ? कैसा टाइम ? 

दरोगा : मस्ती नहीं करने का, इधर ज्यास्ती टैम  नहीं है , तीन बजे का लौटानी फ्लाइट है मुम्बई का , और तुम पहला इंवेस्टिगेसन   है ! चलो टाइम बोलो ! 

रामसुमेर : अरे सर ! किसका टाइम बोलूँ, यहाँ तो अपना ही टाइम ख़राब लग रहा है 

दरोगा : अबे हलकट ! तुम्हारा चौराहे से साहब की मुर्गियां गुज़रने का टैम  पूछता मैं 

रामसुमेर : अरे साहब ! चौराहे से मुर्गी ? ये क्या बोल रहे हैं साहब, इतना भीड़ में वहां से मुर्गी कैसे जायेगी साहेब  ?

दरोगा  : दो महीना पाहिले साहेब का भैंसी तो गुजरा था न तुम्हारे चौराहे से ? 

रामसुमेर :   , पिछली बार आपौ  आये    रहे इंवेस्टिगेसन मां , तब ई गजेन्दरवा झुट्हे  कहा कि भैंसिया हमरे चौराहे से गुज़री , आपौ लोग ई की बात मान गए और हमसे एफ , आई , आर  लिखवा दिए ! 

दरोगा : तुम क्या समझता है ? हम इधर फोकट में आया है  ? अरे तुम्हारा लास्ट एफ आई आर से ही साहब का भैंसी खोजा गया था , अब ऐसी रास्ता मुर्गी गुज़रने का हवाला मिला है , अब टैम  खोटी न करो ! और टाइम बताओ  ! 

रामसुमेर ( मामला  समझते  हुए  ) : ओहो सरकार ! पाहिले बतावेक रहा न , दोपहर  का डेढ़ बजे लिखो 

दरोगा  : काहे कू  ? भैसी तो दो बजे गुज़रा था , बोला तुम ! 

रामसुमेर : हुज़ूर अब आधा घंटा का हेर फेर तो चलता है। 

दरोगा : : मुंडी फिरेला है क्या ? कोर्ट में ये बयान टिकने का नहीं 

रामसुमेर : अब जॉन सूट करत हो , वही लिख देव सरकार , हम कायम रहिबे 

( तभी  धड़धड़ाते हुए थाने के दरोगा भीतर घुसे , और  हड़बड़ाते हुए बोले ,)

दरोगाजी : अरे सर ! ये  इंवेस्टिगेसन छोड़िये , ऊपर से काल आई है कि सब काम छोड़कर "चमेली" नाम की बकरी खोजें 

मुम्बई के दरोगा : ये क्या लफड़ा है ? अबी पहला इंवेस्टिगेसन पूरा नहीं हुआ , नया का कैसे होईंगा  ? अच्छा डिटेल बताओ 

दरोगाजी : किसी खान साहेब ने गवर्नर साहब से दरख्वास्त की है कि उनकी बकरी भी गुम गई है , फाइल आ रही है, सर !  ये मुर्गियों की बरामदिगी दिखा दी जायेगी, इसकी फ़ाइल  क्लोज करते हैं और बकरी की शुरू, इस केस को भी आपको ही सौंपा  गया है , 

मुम्बई वाले दरोगा : ओके  ! बकरी का फाइल मेरा रूम में पहुंचा देना , और दरोगा जी से तुम्हारा मुलुक में मानुष  नहीं खोते कभी  ?

दरोगाजी : ये   ऊ,पी   है सर !  यहां का मानुष , का मानुष की जात  !! 

( तभी थाने की  बिजली चली गई , सारा काम ठप हो गया ) 

रामसुमेरजी बाहर निकले और जोर से बोले  " हलल-हलल भैंसिया पानी  में, आग लागल तोहरी जवानी  में " , फिर मेरी पीठ पर धौल मारते बोले , कइसन रहल नौटंकी , कुछ बुझाला  कि नाहीं  ? " चला तोकरा के अपन चौराहा  से रक्सा कराय देब घर तक " 

( समाचार पत्रों के छिटपुट खबरों से प्रोत्साहित लघु नाटिका ,,,,,तरदा )

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