Sunday, 2 August 2015

धूप जा रही है

बुक्कल नवाब बड़ी तेजी से जनानखाने की तरफ अाये, बेगमात संभल पातीं कि वे भीतर दाखिल हुए : 

बड़ी बेगम : अय  हुजूर !ये  कहीं डाका आन पड़ा है या बाहर जलजला आया हुआ है , जो इतनी बेसब्री से भागे चले आ रहे हैं 

नवाब : मुआफ कीजियेगा बेगम ! पर बात ही इतनी जरूरी है कि बिना किसी हरकारे या बांदी के हमने खुद आना ही मुनासिब समझा 


मंझली बेगम : हुजूर ! तशरीफ़ फर्मा हों , बात निगोड़ी तो होती रहेगी , 

छोटी बेगम : जहे नसीब ! आइये आपको अपने आँचल में बिठा लूँ, पलकों  में  सजा  लूँ , काजल का टीका  लगा चश्मे-बद -दूर कर दूँ 

बड़ी बेगम : लो शुरू हो गईं 

नवाब : ज़रा मेरी बात गौर से सुनिए , कल शिकार पर हमारे फ्रांसीसी दोस्त ने हमें बताया कि अब अादम कद  पेंटिंग की जगह लोग फोटो ग्राफी पसंद कर रहे हैं ,पेंटिंग्स तो केवल एक इंसान की बनाई जाती है , फोटो में सबका  एक साथ  अक्स लिया जा सकता है 

बड़ी : तो ? 

नवाब : हमने फैसला कर लिया है कि हम अपने पूरे खानदान  की एक अदद फोटो खिंचवा कर , दीवाने आम में टंगवा देंगे 

बड़ी : एइ  नौश ! सारा खानदान  ? , नवाब  साहब आप अपने खानदान की रवायत तोड़ने पर आमादा हैं  ! जन्नत में बैठे आपके अब्बा  हुजूर क्या सोचेंगे ? पेंटिंग  में नवाब हुजूर के साथ उसी बेगम का अक्स होता है जिसका बेटा अगला नवाब बनता है 

नवाब : नहीं बेगम ! अब ज़माना बदल रहा है , अगर फोटो खींचनी है तो एक साथ सभी लोगों की खिंच जायेगी , इसमें सबका अक्स भी साफ आएगा, और अलग से पेंटिंग्स बनाने से भी  जहमत नहीं करनी पड़ेगी 

छोटी बेगम : हुज़ूर आप हुक्म करें हम सर झुका कर बजा लाएंगी , यहाँ तो लोगों को हर वक्त ख्वाब  मे छीछड़े ही दिखे हैं , गांव बसा नही कि --------

मझली बेगम ( जो बड़ी के अर्दब  में शुरू से ही थी ) : अब हमें तो न आवे ऐसी तवायफ  पना  , कि आये नहीं और  शुरू हो गई मीठी छुरी, जैसे हम जानती नहीं कि हुजूर के पीठ पीछे क्या नहीं बोलतीं , अरे हम तो खानदानी हैं हमें लिहाज करना सिखाया गया है 

नवाब : अरे ये सब छोड़िये आप  लोग ,और फ़ौरन से पेश्तर तैयार हो जाइये , क्योंकि फोटो ग्राफर  आता  ही होगा , तीसरे पहर थोड़ी धूप रहते खींची गई फोटो बहुत अच्छी आतीं हैं , और किसी को भेज दीजिये जो हमारे पैरहन हमें दे दे , बेहतर होगा कि छोटी बेगम ये काम करें , उन्हें आजकल के चलन का  खासा अंदाजा है 

और ये कहते हुए नवाब साहब अपनी ख्वाब गाह की और चल पड़े , छोटी बेगम ने दोनों बेगमों पर फतह भरी मुस्कान डाली और अपनी बांदी को बुलाने चल दी 

उधर महल के सहन में अंग्रेज फोटोग्राफर अपने लव लश्कर ले कर आ पहंचा था , उसने एक स्टैंड के ऊपर कैमरा रख दिया था, जिसे काले कपडे के बड़े से चोगे से ढँक दिया था , नवाब साहब के नौकर चाकर कैमरा सैट करने में मदद कर रहे थे उसमें से एक ने काला चोगा देखकर फोटोग्राफर से पूछा  : 

नौकर : हुज़ूर क्या आपके यहां भी हिजाब का चलन है ?

फोटोग्राफर, आए डोंट अंडर स्टैंड व्हाट डू  यु से 

नौकर : अच्छा ! अच्छा ! 

दूसरा नौकर : क्या फरमा रहे हैं ?

पहला : कुछ नईं , कह रहे हैं कि बाद में बता देंगे 

दूसरा नौकर : बड़े खुस नसीब हो भाईजान , जो अंग्रेज की बात समझ गए 

इस तरह चुहल चलती रही , थोड़ी देर बाद मुंशीि जी नमूदार हुए , वे अंग्रेज से गिटपिट सिटपिट करने लगे , बाद में एक नौकर से बोले :

मुंशी जी : जाओ अंदर इत्तिला करो कि फोटोग्राफर साहब तशरीफ़ ला चुके हैं 

नौकर : जी हुज़ूर !  ( कह कर भीतर चला जाता  है ) 

फिर मुंशी जी फोटोग्राफर के साथ गुफ्तगू में मशगूल हो जाते हैं , थोड़ी देर बाद फोटोग्राफर कैमरे की और इशारा करते हुए आसमान की तरफ देखता है , मुंशी जी लपक कर दूसरे नौकर के पास आते हैं  और कहते हैं : 

मुंशी जी : ये क्या हिमाकत है ,उसे इत्तिला करने को कहा था, लगता है वह वहाँ  जाकर  सो गया, जाओ, दीवाने ख़ास में इत्तिला करो, और किसी लौड़ी को कहो कि जनानखाने में बेगमात  को भी इत्तिला करे, धूप निकली जा रही है 

नौकर : बेहतर  हुज़ूर ! 

और मुंशी जी फोटोग्राफर के लिए इंतजामात में लग गए कि कहाँ पर कैमरा लगेगा , नवाब साहब कहाँ पर तशरीफ़ रखेंगे, बेगमात कहा, बैठेंगी, वगैरह, वगैरह 

उधर दूसरा नौकर जब भीतर पहुंचा तो उसे बाहर आता हुआ पहला नौकर  मिल गया, उसे देख कर दूसरा बोला ,"आप  कहाँ चले गए थे मियाँ ? वहां मुंशी जी हैरान खड़े हैं कि सब लोग जल्दी आएं , धूप चली जायेगी तो फिर फोटो नहीं घसीटी ज सकेगी 

पहला : क्या मुसीबत है मियाँ ? मैं तो कई बार दीवाने  आम में इत्तिला करवा चुका हूँ , एक लौंडी को जनानखाने रुखसत कर चूका   हूँ कि वो बेगमात  को  इत्तिला कर दे 

दूसरा : चलो तुमने इत्तिला दे दी , मुझे भी इसी काम के लिए बेजा गया था 

उधर, नवाब साहब के ख्वाब गाह  में छोटी बेगम खुद तैयार होकर नवाब साहब के लिए पैरहन चुन रही थी , वो एक शेरवानी उठाती, फिर झट से उसे खारिज कर देती, वक्त गुजरता जा रहा था, नवाब साहब उतावले हो रहे थे , मगर छोटी को आज बाक़ी बेगमों पर अपना रुआब गांठने का मौक़ा जो मिला हुआ था , तब तक जनान  खाने से दोनों बेगम नवाब साहब के ख्वाब गाह में पहुंची , वहां मसनद पर बिखरे नवाब साहब के तमाम पैरहन देखकर बड़ी बेगम तंज कसती हुई बोली :

बड़ी : : ऐ  छोटी बेगम ! हुजूर को आज सारे पैरहन पहिना के मानेंगी  ?

छोटी  त्मक कर बोली : ये तो अपना अपना नज़रिया है, इतने पैरहन देख कर कोई क्या सोचताा है, आप लोगों ने अब तक हुजूर नवाबों की पेंटिग्स ही देखी होंगी, अब फोटो में कौन सी पोशाक जचेगी, यह तो काबिल आँखे ही सोच सकती है 

बड़ी : हुजूर ! उधर जनानखाने में दो बार इत्तिला आ  गयी ही कि  जल्दी करें , धूप जा रही है 

मंझली : हुज़ूर भी फरमा रहे थे कि तीसरे पहर की ढलती धूप में फोटो अच्छी आती है 

नवाब : ज़रा जल्दी कीजिए चोटी बेगम, धुप चली गई तो सारा मजा किरकिरा हो जाएगा 

छोटी बेगम : हुजूर ! जल्दबाजी में आपकी पोशाक में कोई कमी रह जाय तो सारी रियासत में हँसी हो जाएगी , (बेगमों से ) आप लोग दीवाने ख़ास में तशरीफ़ ले जाएँ, मैं हुजूर नवाब साहब को तैयार करके ला रही हूँ 

मुंह बनाती हुई दोनों बेगमें दीवाने ख़ास की तरफ चल दी, वहाँ पहुंचते ही दोनों बातों में मशगूल हो गईं , कि देखो ये छोटी नए चलन की है, न जाने हुजूर को क्या पहना  दे 

तभी बाहर से फिर आवाज़ आई : हुजूर जल्दी कीजिए, ! धूप जाने  वाली है 

बड़ी बेगम ने एक बांदी  को बुलाकर ताकीद की कि वो ख्वाबगाह में जाकर नवाब साहब को इत्तिला करे कि नीचे बुलाया जा रहा है, जल्दी करें धूप जाने वाली है 

थोड़ी देर में नवाब साहब छोटी बेगम के साथ दीवाने ख़ास में जलवा अफरोज हुए , दोनों बेगमों ने नवाब साहब को देखकर अपना दुपट्टा मुंह में डाला और अपनी खिलखिलाहट को रोका , नवाब साहब शिकारी की पोशाक पहने हुए थे जो चमड़े  की थी और उनके जिस्म  में फसी फसी लग रही थी 

बड़ी बेगम ने हिम्मत करके कहा : जान की अमांन  पाउ  तो एक बात कहने की हिमाकत करूँ  ? 

नवाब साहब : अजी कहिये ! आपका हक़ बनाता है 

बड़ी : हुजूर इस पोशाक में तो आप नवाब कतई नहीं लग रहे, ये अंग्रेज छिछोरों की तरह है, जो खुले आम शराबनोशी करें और  गैरों के साथ पहल कदमी करें, नवाबी खानदान की रवायत भी ये  पोशाक  पहने की इजाजत आपको  नहीं देती ( मंझली भी हाँ में हाँ मिलाती है )

( बाहर से फिर आवाज़ गूँजती है " नवाब जल्दी करें , धूप जाने वाली है ) 

नवाब : बड़ी बेगम ठीक कह रही हैं , छोटी हमें रियासत की ही पोशाक पहननी चाहिए , चलिए ,बड़ी बेगम आप भी तशरीफ़ लाइए 

( सभी लोग ख्वाब गह पहुंचे , जहां बड़ी बेगम ने नवाब साहब का खानदानी पैरहन, जवाहरात जड़े कोटी, सलवार, निकाला  और नवाब साहब को पहनाने में मदद की , जब सब कुछ बेहतरी से पहन लिया फिर बाहर से आवाज़ आई, " नवाब साहब जल्दी कीजिये धूप जाने वाली है " , फिर बड़ी बेगम ने हुज़ुर का रुआब ,उनकी पीठ की तरफ बांधा , और सब बाहर चलने को निकले ) 

तभी मंझली बेगम की नज़रें हुज़ूर के पैरों की तरफ पड़ीं तो वो चिल्लाईं : ये क्या बड़ी बेगम ! हुज़ूर को इस पोशाक  के साथ आपने लम्बे बूट पहना दिए हैं ये तो उस शिकारी वाली पोशाक के साथ पहन गया  था 

(बाहर से फिर आवाज़ आई " नवाब साहब जल्दी करें धूप जाने वाली है ")

अब फिर सब लोग ख्वाबगाह की तरफ चल पड़े, नवाब साहब को बूट की जगह जवाहरात जड़े नागरे पहनाये गए , जब तसल्ली हो गई तो हुज़ूर ने एक बार फिर से अपने को आईने में देखा और सब लोगों के साथ बाहर की तरफ चल दिए,

दीवाने आम में जैसे ही हुजूर ने कदम रखा बाहर  से आवाज़ आई ," हुजूर जहमत न करें धूप जा चुकी है " 

अब तीनों बेगमात एक दूूसरे पर तोहमत लगाने लगीं कि उसके कारण  ही धूप चली गई 



1 comment:

  1. बहुत ख़ूब मियाँ, मुबारक हो, क्या ख़ूब लिखा है. आपकी क़लम के सदके. मगर देखिए न जनाब, आखिर ख्वाबगाह में नवाबसाब आला हुज़ूर दिन रहते कैसे पहुँच सकते हैं? हसीनो रंगीं ख्वाब देखने के लिए तो धूप नहीं, चंद और चीजों की दरकार होती है.
    आदाब...

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