( अथ मोदी माहात्म्य )
इस महाकाव्य को सरलीकृत कर सामान्य जन तक पहुंचाने हेतु यह अथक प्रयास है ।
"एतस्मिन्तरे एकदा ,,,,,,,,,,ततो हाहाकृतं कृत्वा "
दक्षिण भारत के एक तटीय राज्य में एक महान वीर का उद्भव हुआ , जिसने सर्वप्रथम उस राज्य में समस्त राक्षसों का संहार किया , फिर श्वान शावकों के अपने वाहन के नीचे कुचल जाने पर विलाप किया , उन नरमुंडों के ढेर पर बैठ कर वह हाहाकार करने लगा
"शंख चक्र गदा पद्म,,,,,,,,,,,,,,अति विस्तार वदना "
अपने इस प्रतापी स्वरूप से उसने अपने राज्य में चिक्वण मार्गों का जाल बिछाया , पूरे राज्य में प्रतिक्षण विद्युत् धारा प्रवाहित होने लगी, हर गली में गार्गी, मार्गी सरीखी विदुषियां नि: संकोच घूमतीं कही भी कोई उत्कोच की घटना नहीं होती । वह शंख चक्र गदा इत्यादि आभूषणों से युक्त हुआ और समस्त राज्य में पद्म (कमल) खिलने लगे , उसकी भुजाएं फड़कने लगीं और वो अन्य राज्यों से दानवों का संहार करने का संकल्प लेकर अपने राज्य से निकल पड़ा .।
इस अवतारी पुरुष ने सर्वप्रथम उत्तर राज्य की ओर प्रस्थान किया , जहां पूर्व में इसके एक स्वामी ने अपने रथ के बल पर विचरण करते हुए दानवों को प्रताड़ित किया था और दानवों द्वारा घेरे गए राम के मंदिर को स्वतंत्र करने की चेष्टा से प्राप्त बल से देश में राम राज्य की स्थापना की थी । किन्तु रक्तबीज के ये वंशज पुन: उत्पन्न हो गए थे और सारे देश में इन दानवों ने अत्याचार , भ्रष्टाचार , दुराचार की सीमाएं तोड़ दी थीं इसलिए ऐसे वातावरण में समस्त देवी देवता इस अवतारी पुरुष की ओर आशा से देखने लगे । यह चलायमान होता हुआ काशी पहुंचा , यहाँ इसने महादेव का "हर - हर", हर लिया जिसे वे अब घर -घर ढूँढते प्रदक्षिणा कर रहे हैं ।
फिर कमलासन पर विदयमान समस्त देवी देवताओं ने इस अवतारी पुरुष को कई अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित किया । यमराज ने काल दंड और दानवों का घात करने हेतु पाश (चाबुक) दिया, । उमा, सुषमा, स्मृति , वसुंधरा इत्यादि देवियों ने इसे अपने तीक्ष्ण नख प्रदान किये , जिससे यह दानव स्त्रियों पर नख से प्रहार कर सके । कमल पुष्प पर विदयमान उन वृद्ध देवताओं ने अपने जीवन भर का कमाया बल इसे प्रदान किया , इन वृद्ध देवताओं के मुख मंडल का तेज इस अवतारी पुरुष के श्रीमुख पर समाहित हुआ ।
कमलासन पर विदयमान उन देवी देवताओं के द्वारा दिए गए अनेक अस्त्र शस्त्रों से आभूषित यह पुरुष पूर्व में इन देवी देवताओं द्वारा प्रचारित " जय श्रीराम" के उद्घोष से ज्यादा प्रभावित हुआ और इसी कारण समस्त देवी देवता इसे देख कर प्रफुल्लित होते हुए "नमो -नमो "करने लगे । यह प्रतापी पुरुष उस नामालूम रावण को ललकारने लगा , उसके द्वारा किये गए बलात्कार भ्रष्टाचार और अनन्य पापाचारों का विवरण वह जन मानस में इतनी चतुराई से करता कि सभी देवी देवता भी अचंभित होने लगे , उसने इतिहास को धता बताते हुए जनमानस को बताया कि उसके द्वारा किये गए दानवों के जनसंहार को अब कई बलशाली देशों ने भी सही ठहराया है ।
उसके इस प्रकार छाती कूटने पर कई "नेताजी" महोदयों की पहलवानी छाती सिकुड़ने लगी, तभी उसके नाम की भयानक आंधी चलने लगी, जिससे कमजोर खड़े पेड़ अपनी जड़ों से उखड कर इस अवतारी पुरुष की बरगदी छाँह में शरण लेने लगे , कई अन्य भीमकाय सेनानियों ने इसके समक्ष घुटने टेक दिए तथा वे संग्राम से पलायित कर गए , जिन्हें अपने कृत्यों पर भविष्य में होने वाले दुष्परिणामों का भान था वे भी इस अवतारी पुरुष की शरण में आ गए, जिन्हें इसने बड़ी आत्मीयता से गले लगा लिया } सभी आश्रित बड़ी तन्मयता से नमो-नमो का जाप करने लगे ।
तब बसंत ऋतु का समापन और ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो रहा था, समस्त गृहों से लोग युद्धभूमि तक हाथों में कमल लेकर चलने लगे, जोर से चल रही आंधी में वे उन कमल पुष्पों को नमो नमो करते हुए इस अवतारी पुरुष को अर्पित करते जाते, इसे और बलवान बनाते जाते } इस प्रकार देश की समस्त दिशाएँ शांत हुईं सारी ज्वाला इस अवतारी पुरुष ने शांत कर दी, उस नामालूम रावण का बड़े जोर शोर से अंत हुआ समस्त देश में शान्ति व्याप्त हो गई } सभी बेरोजगार, रोजगार पा गए, कोई निठल्ला बैठा न था, यहाँ तक कि भविष्य में पैदा होने वाले शिशुओं के लिए भी रोजगार संरक्षित था } समस्त देश में विद्धुत धारा अविचल प्रवाहित होने लगीं, कहीं भी भ्रष्टाचार, कदाचार, व्यभिचार अथवा बलात्कार की घटना नहीं होती,"सरवेजन सुखिन: सर्वे सन्तु निरामय:"
इति मोडीदेवाय माहात्म सम्पूर्ण:
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