जाड़ों की शाम थी, मैं बहराईच से लखनऊ आ रहा था , शाम को बैंक बंद होने के बाद बस स्टेशन के लिए रिक्शा किया और स्टेशन आ पहुंचा । शायद साढ़े पाँच वाली बस जा चुकी थी जो बहराइच से लखनऊ तक सिर्फ एक जगह ही रुकती थी और सभी इसी को पसंद करते थे क्योंकि ये दो घंटे में कैसरबाग पहुंचा देती थी । पर अब क्या किया जा सकता था, दूसरी बस साढ़े छह बजे की थी और ये पैसेंजर बस थी जो तीन घंटे से भी अधिक समय लेती थी । चूँकि हफ्ते में एक बार तो लखनऊ जाना ही रहता था इसलिए मैं अन्य साधन पर भी ध्यान दे रहा था, कभी कभी प्राइवेट जीपें भी लखनऊ जाया करती थीं, और ये भी एक ही हाल्ट लेती थीं इसलिए इनसे भी ढाई घंटे में पहुंचा जा सकता था, पर इनके ड्राइवर सवारियां ठूस - ठूंस कर भरा करते थे , अगर आगे की सीट मिल गई तो गनीमत नहीं तो पीछे की सीट पर तो हालत पतली हो जाती, जहां एक साइड पर तीन सवारियां यानि कुल छह सवारियां, कुछ सामान उन फोल्डिंग सीटों के नीचे और बाक़ी सवारियों की गोद में रहता था, पूरी यात्रा के दौरान पैर हिलाना भी नसीब नहीं होता था, उस पर आफत तब आती थी जब डीजल की बदबू के कारण कुछ सवारियां उलटी करने लगतीं , यानि शशी थरूर का कैटल क्लास यही होता था । गणेशी पुर मोड़ इकलौता हाल्ट होता जहां पिछली सीट से मुश्किल से उतर कर सड़क किनारे लगी दुकानों पर चाय समोसा खाया जाता, अधिकाँश ड्राइवर उन्हीं दुकानों पर जीप रोकते जहां उनका जुगाड़ होता और वे मुफ्त में नाश्ता करते ।
बहराइच से नेपाल गंज नजदीक पडता है, जहां से अक्सर लोग छिपाकर विदेशी सामान लाया करते, हम लोगों के कुछ परिचित ग्राहकों का नेपालगंज में संपर्क था जिससे हम लोग वहाँ से सामान मंगा लिया करते थे, चूँकि उनका बैंक वालों से काम पडता रहता था इसलिए वे सामान की कीमत के अलावा और कोई उजरत नहीं लिया करते थे, इन सामानों में विदेशी शैम्पू ,सैंट , मेकअप का सामान इत्यादि होता था , जिसे बहुत डरते हुए हम लोग अपने शहर ले जाते, लोग बताते कि रास्ते में कभी भी छापा पड़ सकता था । एक लोकोक्ति है कि "गतानुगतिको लोक :" क्योंकि सभी खरीदते थे इसलिए इनकी मांग थी , बाद में मालूम पड़ा कि इससे सस्ती और टिकाऊ वस्तुऐं अपने देश में होती हैं ।
राय साहब बनारस के रहने वाले थे, वे कृषि अधिकारी थे और उनका कार्यक्षेत्र रुपईडीहा तक था, उनका साबका नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्रों के भारतीय ग्रामों में बसने वाले लोगों से पडता रहता था, हम लोग एक लाज में किराए पर रहा करते थे , बातों बातों में एक दिन उनहोंने कोरियाई कम्बल का जिक्र किया जिसे वे बड़े चाव से ओढ़ते थे, यह बड़ा ही मुलायम, हल्का और गर्म था । मेरे पूछने पर वे बोले कि वे इसे मंगवा सकते हैं, लेकिन बहराइच से लखनऊ इसे अपने रिस्क पर ले जाना होगा , मैंने हामी भर दी और एक कोरियाई कम्बल मेरे लिए मंगवा दिया गया , इसे राय साहब ने अपने तरीके से तह कर मेरे बैग में ठूंस दिया और इसकी तहों में कुछ " फा" शैम्पू और एक सैंट की शीशी भी घुसेड़ दी , और बोले इसे बस में यात्रियों के सामान वाले खाने में धर दूँ और अगर कभी छापा पड़ा तो इस बात से मुकर जाऊं कि यह मेरा है । यह बैग और एक अन्य बैग जिसमें मेरे स्वयं के कपडे थे लेकर मैं स्टेशन पर खड़ा था । तभी एक जीप वाला लखनऊ के लिए आवाज़ लगाने लगा, मैं अभी इसी उधेड़बुन में था कि जीप से जाऊं या नहीं, तभी बैंक आफ बड़ोदा के श्रीवास्तव जी मेरे समीप आये और बोले, अब सोच क्या रहे हैं जल्दी से जीप पकड़िये नहीं तो रात ग्यारह बजे तक घर पहुंचेंगे । हम लोग जीप के नजदीक गए तो देखा कि आगे की सारी सीटें भर गई हैं, जीप वाला हमें देखकर बोला अरे बाबूजी क्या सोच रहे हैं पीछे बैठिये, आप लोग तो अक्सर जाते रहते हैं, जितनी जल्दी सीटें भरेंगी उतनी जल्दी में चल दूँगा आप लोग भी समय से घर पहुँच जायेंगे । पीछे की सीटें उठाकर उसने हमारे बैग ठूंस दिए और बोला , चलिए बैठ जाइये । हम दोनों किसी तरह से कसमसा कर बैठ गए, पिछली सीटों पर पहले से ही कुछ लोग बैठे हुए थे , धीरे धीरे उसने पीछे , छह सवारियाँ बिठा ही दीं । मिडिल सीट पर चार सवारियां और आगे की सीट पर ड्राइवर समेत तीन लोग बैठे , सभी सवारियों का सामान उन के पैर के पास बची जगह पर रख दिया और ब्रीफकेस वगैरह सवारियों के हाथ में रख दिया । दस सवारिया . एक ड्राइवर के अलावा एक हेल्पर जीप का पिछला राड पकड़ कर लटक गया, और जीप लखनऊ के लिए चल पड़ी । जीप से यात्रा करने से सवारियों का परिचय गहराती शाम के अन्धकार में यों होता है, :
एक यात्री : ज़रा दायें खिसकिये जी, आप तो हम पर ही लुढ़कते जा रहे हैं ?
दूसरा : अब क्या नीचे गिर जांयें ? कमाल करते हैं आप भी, हम तो बिलकुल किनारे पर ही बैठे हुए हैं, हम तो आपसे खिसकने को नहीं कह रहे हैं ।
तीसरा : अरे भाई साहब सब लोग आगे पीछे हो जाएँ तो सभी को आराम हो जाएगा ,
चौथा : अरे वर्मा जी हैं ? आप कब बैठ गए भाई, अँधेरे में तो बिलकुल नहीं पहचान पाये ?
तीसरा : नमस्कार , सिंह साहब, कैसे हैं ? मैं तो आपको आवाज से पहचानने की कोशिश कर रहा था, आज बड़ी देर में जा रहे हैं ।
सिंह साहब : अरे आफिस में ही बहुत देर हो गई, बड़े साहब डी ऍम की मीटिंग में गए हुए थे , तीन बजे तक आने को कह गए थे पर आते आते उन्हें पांच ही बज गए फिर आफिस बंद कराते कराते देर हो गयी । अपनी सुनाइये , क्या हुआ बिटिया की शादी का कुछ बना ?
वर्मा जी : अरे कहाँ ? काफी रिश्ते आ रहे हैं पर कभी कुछ कभी कुछ , मामला बन ही नहीं रहा है ।
इस तरह आगे और पीछे की सीटों के यात्री एक दूसरे को पहचानते हैं , रास्ते भर घर - आफिस की बातें या देश के हालात पर तफसरा करते हुए लोग यात्रा के कष्ट को भुलाते हैं । शाम गहराती जा रही थी, जाड़ों में शाम बहुत जल्दी रात में बदल जाया करती है । श्रीवास्तव जी मेरे सामने बैठे थे , उनके बगल में एक पर्दानशीं महिला अपने पति के साथ बैठी हुई थी , मेरे बगल में भी एक दंपत्ति बैठे हुए थे । बुर्का पहने हुए महिला की गोद में बच्चा था , वो यदा कडा उसे बोतल से दूध पिला रही थी । मेरे बगल में बैठी महिला उस पर्दानशीं महिला से बोली, कितने महीने का है तुम्हारा बच्चा ? तुम अभी से उसे ऊपर का दूध पिला रही हो ? वो बोली : अरे बहिन ये तो साल भर का है पर इसके दोनों पैरों में पोलियो है, लखनऊ में बड़े डाक्टर को दिखाने ले जा रहे हैं , बच्चे को ओढ़ाये हुए कपडे को उसने हटाया तो उसके पैर लटके हुए थे । जैसा आम औरतों में होता है वे बात का सिरा मिलते ही शुरू हो जाती हैं , वैसे ही पहली बोली, "यहाँ बहराइच के डॉक्टर क्या कह रहे हैं ? बच्चे की माँ बोली " अरे बहुत दवा दिए पर यह ठीक नहीं हुआ तो बोले लखनऊ मे उनके पहचान के एक डाक्टर हैं जो इस बीमारी का इलाज जानते हैं " पहली ." कुछ झाड़ - फूँक भी करायी हो कि नहीं कभी कभी इससे भी ठीक हो जाता है, (अपने पति से ) हमरे गाँव में अइसन एक लड़िकवा रहा , ऊ का ओझा का दिखाएँ तो ऊ झाड़ फूँक के ठीक कर दिहिस " पति : अरे चुपाय रहौ , कुछ जानों न बूझो, बस अपन ज्ञान बघारत रहियौ " तब पहली बार बच्चे वाली महिला का पति बोला, " नहीं भईय्या , भौजी ठीक कह रही हैं, कब्बो कब्बो झाडे फूंके से भी बीमारी ठीक हुई जात है , अब लखनऊ माँ ठीक न हुई तो गाँव ले ऐबे और हमरे गाँव के फकीर बाबा के दिखवाइबे " पहली महिला ने विजई मुद्रा में अपने पति की और देखा , और वार्तालाप चलता रहा ।
श्रीवास्तव जी कहने लगे भाई साहब इधर डी ए बढ़ने की कोई खबर आई कि नहीं ? मैंने उन्हें बताया कि अभी कोई सर्कुलर तो नहीं आया है, वे बोले ," देखिये न कितनी महंगाई बढ़ चुकी है ,,सरकार कुछ ध्यान नहीं दे रही है, बैंक में भी काम दिन पर दिन बढता ही जा रहा है, मैनेजर साहब हैं कि लिपिकों से कुछ नहीं कहते और हम पर ही सारा काम लाद देते हैं , सुबह सबसे पहले आ जाता हूँ और शाम को बैंक बंद करा कर ही निकलता हूँ , फिर घर आ कर शाम का खाना बनाओ , खाओ, बर्तन साफ़ करो फिर सो जाओ, सुबह उठकर फिर से यही दिनचर्या रहती है, क्या जिंदगी है ? पता नहीं लखनऊ ट्रांसफर कब होगा ? रीजनल आफिस में भी कोई सुनने वाला नहीं है । मैं उनकी बातें सुनकर हूँ हाँ करता रहा वो जमाने के सताये हुए थे । बीच बीच में आगे वाली सीटों से भी वार्तालाप किये जाने की आवाजें आ रही थीं ।
रात गहराती चली जा रही थी, दूर दिख रहे गाँव में टिमटिमाता प्रकाश दिखलाई दे रहा था, जीप काफी तेजी से भाग रही थी, ड्राइवर का सहायक जो शहर तक जीप के पिछले हिस्से में लगी राड पकड़े बैठा था , अब उचक कर हमारे सामने की सीट पर उन तीन सवारियों को धकेलता हुआ बैठ गया , शायद उन सवारियों को ज्यादा आपत्ति नहीं थी या वे इस तरह की स्थिति के आदी थे । जीप का ड्राइवर , सड़क पर दौड़ रहे ट्रकों, बसों को पछाड़ता हुआ जीप को भगा रहा था , तभी सायरन बजने की आवाज आई और पीछे से पुलिस की एक जीप ने तेजी से हमारी जीप को ओवरटेक किया, और ड्राइवर को रुकने का इशारा किया , भुनभुनाते हुए ड्राइवर ने जीप किनारे करते हुए रोकी और जीप से उतर गया । पुलिस की जीप के रुकते ही उसमें से दनादन सिपाही उतरे और हमारी जीप को घेर लिया । मेरा कलेजा मुंह को आ गया, जरूर ये छापा पड़ा है, अब मेरी और कोरियाई कम्बल की खैर नहीं । तभी एक पुलिस वाला कड़क कर बोला ," सभी लोग जीप से उतर जाएँ, अपना सामान जीप में ही रहने दें " खिसियाता हुआ मैं भी अन्य लोगों के साथ नीचे उतरा । वे लोग बड़ी बड़ी टार्च लिए हुए थे और बड़ी गहनता से हमारे सामानों की तलाशी ले रहे थे , इस काम में सहायता के लिए इन्होंने ड्राइवर के सहायक को भी बुला लिया, जो बारी बारी से सामान निकालता और उसे चेक कराता और सामान के मालिक की और इशारा करता, पुलिस वाले सामान के मालिक को नजदीक बुलाते और कुछ सवाल जवाब करते । मेरा हलक सूख कर काँटा हुआ जा रहा था न जाने अब क्या होगा, अगर इन्होंने पकड़ ही लिया तो क्या करूँगा, लोग न जाने क्या क्या बातें बनाएंगे, बैंक वाले भी न जाने क्या सोचेंगे, बड़ी गलती कर दी न जाने कैसे इससे छुटकारा मिलेगा, मन में हजारों ख्याल आने लगे । काफी देर बाद जब श्रीवास्तव जी भी निपट गए तो मेरी बारी आई , धड़कते हुए मैं पुलिस वालों के सामने पहुंचा । सामान देखने के बाद पुलिस के आला अधिकारी ने पूछा ," क्या करते हो ? ये सामान कहाँ से लाये हो ? कहाँ ले जा रहे हो ? सिटपिटाते हुए मैंने कहा, " सर : मैं बैंक में हूँ , मारे शौक के ये सामान लिया था, मैं समझता हू कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था , यह पहली और आखिरी बार है " वह मंद मंद मुस्कुराता हुआ बोला ठीक है आइंदा से ऐसा मत करना , फिर उसने मेरे शरीर की तलाशी ली , जैसा कि पुलिस वाले अन्य यात्रियों की कर रहे थे । पुलिस वालों के साथ कुछ महिला कांस्टेबल भी थीं जो महिलाओं की तलाशी ले रही थीं । करीब एक घंटे की गहन तलाशी के बाद उनहोंने हमारी जीप को जाने की इजाजत दी ।
अब जीप सरपट भाग रही थी, जीप के यात्रियों में इस तलाशी पर चर्चा होने लगी , आगे की सीट पर बैठे कुछ यात्रियों ने तस्करी पर बहस शुरू कर दी जिसका लब्बोलुआब यह था कि कुछ लोगों की ऐसी हरकतों से सभ्रांत आदमियों का कीमती वक्त खराब होता है , शायद उनका इशारा मेरी तरफ रहा होगा , मेरे मन में चोर था , हांलांकि मेरे सामान को पुलिस वालों और ड्राइवर के सहायक के अलावा किसी ने नहीं देखा था , और मैंने यह नहीं देखा था कि मेरी तरह कोई अन्य व्यक्ति भी कुछ विदेशी सामान ले जा रहा था । पिछली सीट पर बैठे हैम लोगों के बीच भी इस सम्बन्ध में बातें होने लगीं । श्रीवास्तव जी मुझसे बोले , " आपको इतना वक्त क्यों लगा तलाशी देने में ? क्या कुछ ले जा रहे हैं ? । मैं बोला ,"अरे कुछ नहीं एक कोरियाई कम्बल है, मैंने उन्हें बता दिया , वे बोले ठीक है, आइंदा मत ले जाना " श्रीवास्तव जी खी खी कर हँसने लगे । मैं चुप रहा । तभी बुर्के वाली महिला अपने पति से बोली , " का ज़माना आई गवा है अब्दुल के अब्बा ! एक घंटा बर्बाद हुई गवा , अब तौ डाक्टर का मिलिहैं ? अब रमजान मियाँ के घर रुकिक पड़िहै , अब तौ अब्दुल के कलहीं दिखाएक पड़िहै " उसका पति सहानुभूति भरे स्वर में बोला " अब का किया जा सकत है अब्दुल की अम्मा , जॉन ईके भाग माँ हुई वही तो मिली ! " हम गरीबन के सुने वाला कौन है, ई बाबू लोग तौ दे दीवाय के छूट जात हैं " सब मुझे हिकारत की नजर से देखने लगे, मैं शर्म से गदा जा रहा था , ऐसा लग रहा था मानो इस देरी के लिए मैं ही जिम्मेदार था , मेरी तलाशी के समय भले ही मेरे और पुलिस वाले के बीच हुई बातों को किसी ने न सूना हो पर उसे मुस्कुराता हुआ तो सभी देख रहे थे , सभी के मन में ये विचार था कि शायद मेंने कुछ दे दिवा कर पुलिस से छुटकारा पा लिया था इस विचार में शायद श्रीवास्तव जी भी शामिल थे ।
जीप गणेशी पुर मोड़ पहुँच रही थी , ड्राइवर ने एक दूकान पर जीप लगा दी और बोला केवल पंद्रह मिनट का हाल्ट है, आप लोग चाय वगैरह पीजिये , फिर जल्दी ही चल देंगे , पहले ही काफी देर हो चुकी है । सभी लोग जीप से उतर गए , मैं भी श्रीवास्तव जी के साथ चाय पीने लगा । चाय पीते वक्त भी लोग इसी बात का जिक्र कर रहे थे कि कुछ लोगों के कारण सभी को दिक्कत हो गई । ड्राइवर और उसका सहायक उस दुकानदार से बतिया रहे थे और बार बार मेरी तरफ इशारा कर रहे थे । मेरी स्थति बड़ी अजीब सी हो रही थी , मैं सोच रहा था कि यहाँ से किसी और सवारी से निकल जाऊं पर देर हो चुकी थी वहाँ कोई सवारी नहीं थी । मन मसोसता मैं उसी जीप में बैठ गया । सभी सवारियों के बैठने के बाद जीप फिर सरपट दौड़ चली , अब ड्राइवर इसे बहुत तेज चला रहा था , आगे बैठे एक सज्जन ने उसे टोका कि इतनी तेज क्यों चला रहे हो ? अब तो देर हो ही गई है , जल्दी के लिए सभी के जीवन को संकट में न डालो । झुंझलाते हुए ड्राइवर ने स्पीड कम की और बोला ठीक है , देर होगी तो मुझसे मत कहियेगा ।
ठण्ड बढ़ रही थी , महिलाओं ने अपने को शाल से ढक लिया था , कुछ पुरुष यात्रियों ने गले में मफलर डाल लिया था , यह जंगली इलाका था। गहन अन्धेरा था , जीप के बाहर कुछ भी नहीं दिख रहा था, केवल बैक लाइट के क्षीण प्रकाश में सड़क के दोनों और खड़े पेड़ दैत्य जैसे लग रहे थे , ऐसा लग रहा था कि वे जीप के साथ साथ दौड़ रहे हों । उकड़ूँ बैठे होने के वावजूद कुछ लोग ऊँघ रहे थे , जीप के इंजन की गुर्राहट के अलावा कभी कभी किसी के खांसने की आवाज सुनाई दे रही थी । तभी अचानक फिर से सायरन की तीखी आवाज गूंजी और वही पुलिस की जीप फिर से ओवरटेक करती हुई चरचराहट की आवाज के साथ हमारी जीप के आगे रुकी जिसे तब तक हमारा ड्राइवर किनारे लगा चुका था । क्या बवाल है यार , कहते हुए ड्राइवर नीचे उतरा , पहले से ही उतरे पुलिस वाले ने उसे जोर का थप्पड़ मारा और बोला साले सीधे खड़े रहो , और कड़क कर सभी से बोला, कोई अपनी जगह से हिलेगा नहीं , जिसको बुलाया जाय वही उतरेगा , फिर पुलिस वाले ने अपनी जीप से एक कांस्टेबल को आवाज दी जो एक खौफनाक कुत्ते को ले कर नीचे उतरा , हम सभी को नीचे उतारा गया , कुत्ते ने पूरी जीप को सूँघा , फिर हैम सबको सूँघता हुआ वह अचानक उस बुर्के वाली महिला पर टूट पड़ा, उसने उस महिला के बच्चे को अपने जबड़े में पकड़ लिया, वह महिला जोर से चिल्लाई, " अरे हमार बिटुआ के कूकुर काट डाली , अरे बचाओ कोई , अरे अब्दुल के अब्बा कुछ करौ । तब तक महिला कांस्टेबल उसके समीप पहुँच चुकी थी , और अन्य दो कांस्टेबल भी उसकी तरफ बढे, तभी उस भयावह कुत्ते ने उस बच्चे को जोर से जमीन पर पटक दिया + तभी वह बुर्के वाली महिला ने अपने ब्लाउज से पिस्तौल निकाल ली और हवा में लहराते हुए बोली," खबरदार जो कोई आगे बढ़ा !! फिर दोनों लोग खेतों की तरफ भागने लगे , तभी बड़े अफसर ने अपने होलस्टर से पिस्तौल निकालकर उनकी तरफ फायर झौंक दिया , "हाय" की आवाज आई और अपने पैर को पकड़ कर लंगड़ाते हुए दोनों फिर भागने लगे तब तक पुलिस वालों ने उन्हें घेर कर पकड़ लिया । इतनी देर में कुत्ते ने उस बच्चे को चीर दिया था, पुलिस वालों ने अपने टार्च की रोशनी उस तरफ फैंकी तो देखा कि बच्चे के कपडे उतर गए थे और उसका नंगा बदन सबके सामने था । उस बच्चे के गर्दन के नीचे पूरा धड़ चार हिस्सों में सिला हुआ था, जिसे पुलिस के आला अधिकारी ने एक महीन नश्तर से काट दिया, सबने देखा कि उस धड़ में पालीथीन की थैलियां थीं जिसमें कुछ भरा हुआ था । हमारे पूछने पर उसने बताया कि यह हेरोइन है जिसकी अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में करोड़ों की कीमत है , उसने आगे बताया कि हम कई दिनों से इस गिरोह के पीछे पड़े हुए थे, हमें पक्की सूचना थी कि यह गिरोह आज करोड़ों की हेरोइन ले जाने वाला है । मैंने पूछा कि आप तो पहले तलाशी ले चुके थे , फिर आपको क्यों शक बना रहा, उसने वही पिछली मुस्कराहट देते हुए कहा," देख नहीं रहे हैं सर ! कितनी चतुराई से यह तस्करी हो रही थी , ये तस्कर कितने खतरनाक हैं इन्होंने जरूर किसी अस्पताल से यह बच्चा चुराया होगा , फिर बड़ी नफासत से इसमें तस्करी का माल भर कर सिला होगा , इनके लिए बच्चे की जिंदगी क्या है ? खैर अब तो हम इनसे सारे राज उगलवा लेंगे ।
इतनी बड़ी सफलता उन्हें मिल चुकी थी , सभी पुलिस वाले हैम सभी के प्रति आभार प्रकट कर रहे थे , फिर बड़े सम्मानित तरीके उन लोगों ने हमें जाने को कहा और हो चुकी देरी के लिए क्षमा भी मांगी ।
जीप फिर चल पडी , सभी यात्रियों को जैसे सांप सूंघ गया था , किसी ने भी ऐसी ह्रदय विदारक तस्करी नहीं देखी थी , सब सन्नाटे में थे । सबसे आगे बैठे उस सूटेड बूटेड व्यक्ति ने कहा, " तभी मैं सोच रहा था कि पुलिस वाले हमारे द्वारा ले जाए जा रहे विदेशी सामान को तवज्जो क्यों नहीं दे रहे हें , ये लोग तो किसी और फिराक में थे " तभी दूसरे सज्जन बोले,"क्या आप भी भाई साहब ?, वे बोले " हाँ कुछ विदेशी पेन और घडी व् एक शैम्पेन की बोतल थी मेरे सामान में " दूसरा बोला ," ही ! ही !! ही !!! , एक कोरियन कम्बल और मेकअप का सामान मैं भी ले जा रहा हूँ " फिर धीरे धीरे सभी खुलने लगे, सभी कुछ न कुछ ले जा रहे थे, तभी श्रीवास्तव जी खिसिया कर मुझसे बोले, " भाई साहब एक चाइनीज टुल्लू मैं भी ले जा रहा हूँ । हमाम में सभी नंगे थे, मैं खामख्वाह इतनी देर से अपनी बेइज्जती महसूस कर रहा था ।
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