बसंत
बागन में बगियन में बगरयो बसंत है ,
सिहरन और ठिठुरन का हुआ अंत है,
हास है परिहास है जीवन में उल्लास है,
कोहरे को चीरता सूरज का प्रकाश है
पीली खिली सरसों, लाल ये पलाश है,
कोयल को कूकने के मौके की तलाश है,
नीड़ से वितान से, सब चले अभिमान से,
नायिका के पर लगे, कर रही प्रमाद है
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