अल्मोडा से लौट रहे थे, यहाँ इनकी दीदी के घर पर एक हफ्ते के प्रवास के बाद नैनीताल जाना था । के.एम.ओ.यू की बस से सफ़र हो रहा था, हमारे पीछे की सीट पर दो लडके बैठे थे, और उनके पीछे की सीट पर एक साधू महाराज विराजमान थे । विभोर दो साल का था लेकिन बहुत बातूनी था , किसी भी सुनी हुई बात को वो एकदम कापी कर लेता और पूरा वाक्य जस का तस बोल देता । वो मेरी गोद में था और बहुत उत्पात मचा रहा था, कभी खिड़की से बाहर देखने की जिद करता कभी माँ की गोद में जाने को मचलता, फिर मैंने उसे कंधे पर लटका लिया और उसका मुंह पीछे की और हो गया, उसकी शैतानी देखकर वे दोनों लडके बहुत आंनंद ले रहे थे, वे विभोर से फ़िल्मी गाने और कवितायें सुनते और बातें करने लगे । जब वह बोर होने लगता तो उसे टाफी देते, तो वह उनकी और फिर से उन्मुख हो जाता । बस में बहुत भीड थी, चारों और लोगों की चकचक मची हुई थी , मैं और गीता भी बातें करने लगे ।
कोई आधे घंटे के सफ़र के बाद उन लड़कों ने जैसे विभोर को अपने वश में कर लिया था, वे उससे खूब बातें कर रहे थे और उसकी मासूमियत भरी बातों सुनकर वे खूब मजा ले रहे थे । अचानक साधूमहाराज बोले , " बच्चा ! ये फ़िल्मी गाने या कविताओं के अलावा भी कुछ जानते हो ? न जाने क्या समझ कर विभोर साधूमहाराज को हनुमान चालीसा सुनाने लगा, , उसे उसकी दादी ने पूरी हनुमान चालीसा कंठस्थ करा रखी थी , पूरी हनुमान चालीसा सुनने के बाद साधू महाराज बोले,"अद्भुत ! कितना गुणी बालक है " फिर उन लड़कों से बोले ," देखा ! तुम लोगों को यह भी नहीं पता होगा कि हनुमान चालीसा किसे कहते हैं, अरे , इस बालक से कुछ सीखो,उससे फ़िल्मी गाने सुन रहे हो । साधू की बात सुनकर वे लडके खिसिया गए और , और चुप हो गए । साधू महाराज अन्य यात्रियों से बोले, बडा ही भाग्यशाली बच्चा है यह , अपने माँ-बाप का नाम रोशन करेगा, उसके बाद उन्होंने विभोर को अपने झोले से कुछ फल व् बताशे निकाल कर दिए । वे लडके प्रकरण बदलते हुए आपस में धीमे धीमे बतियाने लगे ।

करीब एक घण्टे की यात्रा के बाद गरमपानी आया, ड्राइवर ने बस किनारे रोक दी, कंडक्टर सभी यात्रियों से बोला, "बस पंद्रह मिनट का हाल्ट है, जिसको, पानी, पेशाब कुछ करना हो कर लें इसके बाद बस चल देगी , कंडक्टर और ड्राइवर , फ्री का खाने के लिए दूकान की और चले गए । मैं भी बस से उतरा और विभोर के लिए कुछ बिस्कुट वगैरह लाया और जल्दी ही बस में चड गया, हम लोगों ने चाय पी और विभोर ने दूध के साथ कुछ बिस्कुट उदरस्थ किये । पंद्रह मिनट हो चुके थे, लोग धीरे धीरे बस में आने लगे, लोग आपस में एक दूसरे से जोर से बातें कर रहे थे, कुछ देर बाद ड्राइवर और कण्डक्टर भी बस में चढे, कण्डक्टर जोर से बोला," अरे देख लो रे अपने अगल बगल, कोई छूट तो नहीं गया है ! अब गाडी चल देगी, उसी समय साधूमहाराज ने अपना शंख निकाला और जोर से इसे बजाने लगे, " तू.… तू.……. तू.…… तू, और पूरी बस में एक पावन सी शान्ति छा गई , सभी लोग साधू महाराज को आदर से देख रहे थे, अभी शंख की अनुगूँज लोगों के कानों में थी कि अचानक उस सन्नाटे में विभोर की आवाज गूंजी, " बाप न जाने पादना , बेटा शंख बजाय !!!! , कुछ क्षण बाद जब लोगों को समझ में आया तो लोग ठठा कर हंस पडे, उन दो लड़कों का तो हंस हंस कर बुरा हाल था , उनमें से एक बोला,"यार गज़ब !! फिर एक बार बोल" । तभी पीछे से साधू महाराज चिल्लाए," ये क्या बदतमीजी है, इतने छोटे लडके को क्या क्या सिखा रखा है ?" मेरे लाख समझाने पर भी कि हमने इसे ये सब नहीं सिखाया है, वे मानने को तैयार नहीं थे और भुनभुनाते रहे । मैं भी विभोर की टाइमिंग पर चकित था , वो कई चीजें बोलता था पर यह वाक्य !!!!!!, बाद में गीता ने बताया कि एक दिन यह जोशी जी ( हमारे बहनोई जी ) से बहुत बातें करने पर उनसे डांट खाया था और उन्होंने ही इससे ये कहा कि, "चुप बे, बाप न जाने……………."
और सारी यात्रा में वे दोनों लडके विभोर को खूब उकसाते रहे ।
No comments:
Post a Comment