मन बंजारा हुआ जाता है ,……………….
दूर तक रेत ही रेत है,
कच्छ के रेतीले समुद्र सा ,
मन बियाबां सा हुआ जाता है ,……………
.
नरों में तुम इंद्र हो ,
कुंजर क्यों बन गए ?
अन्धेरा इस कारा में घिरता जाता है……………….
कोई उधो इस माधो को बताये,
साथी था जो कभी तुम्हारा,
वो कृष्ण (लाल) अब बूढा हुआ जाता है। ……………….
हम उनमें हैं जो कामिनी की ,
हथेलियों पर ह्रदय उकेरते ,
एक दीवाना पगलाया हुआ चला जाता है। ……………………
सुध न ली कभी तुमने हमारी ,
शाह की उँगलियों में नाचते फिर रहे,
न जाने वो तुमको क्या समझाता जाता है। …………….
तुम्हारे इक इशारे पर न जाने,
कितने विधर्मियों को मैंने है मारा ,
नरमुंडों को ठोकरें मारता सरपट तू कहाँ जाता है। …………….
सबको मैंने मारा पर तूने दी कारा,
तेरे हर राज़ को सीने में दफनाये हुए,
तुझे पतियाँ लिखने को मन मचलता जाता है। ………………….
बंजर जमीन पर कोंपलें देखी नहीं जाती
नकली किलों से लडाइयाँ लड़ी नहीं जाती,
न जाने किस गुमान में ये हुंकार भरे जाता है। ……………………
घटाटोप अंधेरी कारा में कब होगा उजारा ,
बाहर आने को तुम्हारा कब होगा इशारा ,
जालिम क्यों मुझसे दामन छुदाता जाता है.………………….
मन बंजारा हुआ जाता है। ………………।
न जाने किस गुमान में ये हुंकार भरे जाता है। ……………………
घटाटोप अंधेरी कारा में कब होगा उजारा ,
बाहर आने को तुम्हारा कब होगा इशारा ,
जालिम क्यों मुझसे दामन छुदाता जाता है.………………….
मन बंजारा हुआ जाता है। ………………।
No comments:
Post a Comment