आम

धल्कट्या में हमारे खेत हुआ करते थे जो बटाई में हमारे पूर्वजों के हिस्से में आये । फसल कटने के बाद वहां जब दूसरी फसल उगाने का समय होता तो उससे पूर्व वहां बहुतायत में उपलब्ध गाज्यो (Cattle feed) काटने के लिए सभी लोग जाया करते । वहां आम का एक विशालकाय पेड था जिसमें आम के मौसम में बहुतायत में आम लगा करते थे ,यह पेड गशेरे ( बरसाती नाला ) के किनारे था, गधेरे में नुकीले पत्थर पडे रहते थे , आम के लिए सभी का मन ललचाया करता पर उस पेड में बिना चढे आम नहीं तोडे जा सकते थे । कुछ लोग गधेरे में उतर जाते और स्वत : गिरे आमों को बीनते, पर उस पेड पर चढ़ने की किसी में हिम्मत नहीं थी ।
हमारे बड्बाज्यू (Grandfather ) बहूत हिम्मती व्यक्ति थे , लोगों को गिरे हुए आम उठाता देख वे कहने लगे, अरे ऐसे तो तुम आम खा चुके, भला टपके हुए आम कितने होंगे ? रुको में तोड कर लाता हूँ , उनके बडे भाई ने टोका रहने दे भबन दत्त क्यों जान जोखिम में डाल रहा है, पर बड्बाज्यू कहाँ मानने वाले थे , उन्होंने अपने पीठ पर एक कुथला (Big sac ) लटकाया और बन्दर की फुर्ती से पेड पर खटाखट चढ गए , पेड की दो समानांतर शाखाओ में एक को पकड कर और दूसरी में पेर टिका कर आम तोड कर कुथले में भरने लगे, इस डाल से उस डाल पर जाते और आम तोड कर कुथला भरते जाते, जब नीचे की डालों पर आम ख़त्म हो गए तो वो और ऊपर चढ गए, कुथला खूब भर चुका था, अचानक जिस डाल पर उन्होंने पेर टिका रखा था वह उनके और कुथले के भार से चरमरा कर टूट गई, वो ऊपर की डाल पकडे हुए थे और उसी से लटक गए, नीचे खडे हुए लोगों की सासें थम गईं वो चिल्लाने लगे, हाय अब ये मर गया , इसका हाथ छूटता है और यह सीधे नीचे गधेरे में गिरता है वहां नुकीले पत्थरों पर गिर कर इसका सर फूटेगा, और इसके प्राण निकल जायेंगे, हमारी दादी, बडी दादी, बडे बड्बाज्यू सभी रोने लगे, पर बड्बाज्यू बिलकुल नहीं घबराए उन्होंने अपने छोटे भाई को आवाज़ लगाई और कहा, गोविन्द रोना धोना बंद कर और जल्दी से दराती ( हंसिया ) ले कर ऊपर आ , कंपकंपाते हुए छोटे बड्बाज्यू पेड पर चढ़ने के लिए भागे पर विशालकाय पेड के समीप पहुँच कर उनकी हिम्मत टूट गई वे बोले, दाज्यू में कैसे ऊपर आऊँ , कैसे पेड पर चढ़ूँ , बड्बाज्यू ने उनसे कहा घबडा मत, देख जैसे में कहता जाऊं टू पेड की शाख पकड कर ऊपर चढ़ता जा, और वे ऊपर से बताते रहे, उन्हें हिम्मत दिलाते रहे और छोटे बडबाज्यू किसी तरह ऊपर पहुंचे , कहने लगे, दाज्यू आज तुम नहीं बचोगे, बड्बाज्यू बोले, चुप, जल्दी से इस कुथले को दराती से काट, छोटे बड्बाज्यु हडबडाहट में कुथला काटने लगे, उनका हाथ सीधा न पडता था वे रोते चले जा रहे थे, उन्हें टोकते हुए बड्बाज्यू फिर डपट कर बोले, क्या कर रहा है, दिल कडा कर कुथले को काट, । कुथला कटते ही सारे आम भरभरा कर नीचे गधेरे में गिरने लगे, कुथला खाली हो गया, , पर इतनी देर में बड्बाज्यू का हाथ भी छूटता चला जा रहा था, उन्होंने अपनी उँगलियों से ही ड़ाल पकड रखी थी, पर अब छूटे कि तब छूटे, , उन्होंने छोटे बड्बाज्यू से कहा, गोविन्द जल्दी से अपने दोनों पैर मेरी उँगलियों पर रख कर दबा, उनके ऐसा करते हुए बड्बाज्यू ने बन्दर की तरह गुलाटी मारी और ड़ाल के ऊपर आ गए , और हंस कर बोले देखा तू खामखाँ घबडा रहा था, चल नीचे उतर । और दोनों भाई नीचे आ गए । नीचे आ कर बड्बाज्यू ने गहरी सांस भर कर कहा , चलो बच गया पर आम तो गधेरे में ही गिर गए । उनके बडे भाई ने सुबकते हुए कहा , आग लगे ऐसे आमों पर, तेरी जिन्दगी बच गई समझो हमने आम खा लिए , आज तेरा नया जन्म हुआ है, चल सबके पैर छू । बड्बाज्यू ने अपने से सभी बड़ों के पैर छुए , और सभी लोग सन्नाटा भर घर को लौटे । बाद में सभी ने बड्बाज्यू के करिश्मे की खूब चर्चा की जो आज भी जारी है ।
ऐसे थे हमारे बड्बाज्यू, अदम्य साहसी, त्वरित निर्णय लेने वाले बुद्धिमान , धैर्यशील , और विवेकी ।
संकट की घड़ी में अपने विवेक पर भय को हावी न होने देना, और शीघ्र निर्णय लेना ही पौरुष का प्रतीक है ।
संकट की घड़ी में अपने विवेक पर भय को हावी न होने देना, और शीघ्र निर्णय लेना ही पौरुष का प्रतीक है ।
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