Wednesday, 24 April 2013

I C U से ...................


I C U   से ...................

( वर्ष   2009 , में काफी बीमार पडा , अस्पताल में , I C U  में भर्ती  किया गया , वहां तन्हाइयों में समय कटता न था ऐसे में कागज़ पर कुछ उकेरने लगा । )


यूं यकबयक बीमार हो जाना भी मेरे हक़  में  हुआ ,

जिस्म के अंदरूनी हिस्सों से, आज में वाकिफ  हुआ 


इक जिगर है , खबर है जिसको  जिस्म की जरूरियात की ,

ये ही बतलाता है क़ि कमी  कहाँ है , और किस बात की ,

देखिये  इसके नाम का कितना असर है , 

जो भी प्यारा है वही लख्ते  जिगर है  ,

इसका मजबूत रहना बहुत है  लाजमी ,

तभी तो कहलाता जिगर वाला आदमी  ॥ ॥ 


जिस्म की हर जुम्बिश के पीछे इक धडकता  दिल ही तो है , 

खींचता जिस्म से लहू को, सींचता जिस्म को ही है 

इसकी हरकतों के किस्से दीवाने ओ ' शायर कह गए ,

कुछ ने की शायरी - रुबाई , दीवान बहुत से लिख गए, ॥ ॥ 


इक मगज है ,गज़ब है जिसमें मक्कारियां भरी हुई,

परेशां  करने को बहुत   सी अय्यारियां  भरी  हुई , 

इसके इक खाने में यादें भरी रहती हैं सदा ,

दूसरे में सोचों की  मौजें  उठती हैं  बाकायदा  ॥ ॥ 


तितलियों के पंख सा , फैलता सिकुड़ता है फेफड़ा ,

हड्डियों के कफ़स में सीना ताने है खडा ,

धौकनी चलती है इसकी , फुसफुसाहटों से भरी हुई , 

दीखती है इसके बदन पर सांस भी सांस लेती हुई , 

फूलने पिचकने की हरक़त गर कभी गाफिल हुई ,

या खुदारा !  रूह तब जिस्म से बेदखल हुई  ॥ ॥ 


इक है मेदा , पैदा जिसमें, होता जिस्मानी तेज़ाब , 

लजीज खानों  के टुकड़ों के टुकडे करता बेहिसाब ,

कूटता , पीसता लुगदी बना कर ,अंतड़ियों  में फेंक देता है जनाब 

मै  के क़तरे उतरते  हलक  से , इठलाते हुए रुकते यहाँ ,

फिर रगों में  दौड़ते मगज तक, दीवाना कर देते जहाँ 





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