( हल्द्वाणि जाई भयां , इनर दिदि वां ले जाण पड़ , रत्ते जाई ब्याल आयां, उनरि चेलि तब मास्टरनी छी , वीक हाल देखि यो कविता निकलि ) ......................
मै बाब नान्तिनन हूँ के के नि करन ,
आपुण नि खाय , उन्हनू धरनी
पर ख्वार पडा नानतिन नि खान लगड़
धिगड़ ले अब कम कम लगूनी .
म्वाटा - घाटा नानतिन खूब हूछी हो धिनाली ,
चाई रूछ्याँ कब भैंस हो बियाली ,
गाड बग्नेर भै कूछा दूध दै घ्यूकि ,
छाँ पीनेर भयां , पाणि मुख नि लगूँछी
पर आजकल फैशन भयो लिस्तड पट्क्याई ,
बाट में घुरी रूनी जस आम चुस्क्याई .
कमर तोरियाँ जसी आँख हिसालू टप्क्याई
हाथ खुट काकड़ जसा , ऊ ले घामाक सुखाई .
पदी - लिखी बेर खाली बैठ अब के करनी ,
हल्द्वाणि में यो साल देखि रितुली मास्टरनी .
आठ बाजी रत्तेब्याण हाथ चहा को गिलास ,
मूख मारी पाणि छींटा , लिण हूँ जाछी किलास .
जस कस स्कूल नि भै , भयो कौन्वेण्टा ,
नौकरी टेम्परेरी भई नि भै पर्मानेण्टा .
तनखा जतुक भई ऊ है बाहिक निकल जानी ,
सब सामान लिण भयो जो बेचेंछी लम्याणी .
छब्बीस जनवरी दिन रत्तेब्याण न्हेगे ,
निरार पेट जाई भई घर के नि कैगे .
इज वी की चाई भई कब घर आली ,
बाब कुनेर भया , वां परेड ऊ कराली .
दिन दोफरी घाम ऊ घर जब आई ,
कालो मूख हई भयो जस हूँ जोत्याई .
हाथ को पर्स खितो ज्वात वां घुराई ,
कैको पुछ्ण कुंछा , नि देखि को भै आई ,
सिराण हूँ मुख करि , खुटाण हुं रिसाई .
ऐसि नौकरी के भै , थोल पट्क्याई ,
मै कणि नि:श्वास लागो घर लौटि आई ।
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