हाईस्कूल की परीक्षा की स्कीम आ चुकी थी , गैंडे ने सभी विद्यार्थियों को बुला कर आगाह कर दिया था कि छह माहीं में जिसके नंबर कम आये हैं और जिनकी उपस्थिति कम है वे अपने गार्जियन को बुला कर लायें नहीं तो एक्जाम में बैठने नहीं दिया जायेगा । प्राय : सभी स्कूलों में बच्चे अपने अध्यापकों के निक नेम रख देते हैं , हमारे प्रिंसिपल साहब चूंकि मोटे थे इस लिए सभी उनको गैन्डा कहते थे, वैसे अन्य टीचरों के भी निक नेम थे जैसे कीडा, कुल्हड़ ,लंकापति इत्यादि .इत्यादि ।
राजेश भसीन के पिता की बहुत बड़ी कपडे की दुकान थी , जब हम लोग साइकिलों से स्कूल आया करते थे तो वह बाइक से आता था , माँ बाप का मुंह लगा था , जो कुछ भी मांगता उसे मिल जाता था, सभी पर रुआब गांठने के लिए खूब खर्च भी करता था । छह मांही में फेल हो गया था और क्लास में न आकर पान की दुकान पर मज़मा लगाया करता था , शौक शौक में हम लोग भी राजेश भाई की उदारता का फ़ायदा उठाया करते ,चाय समोसा , सिगरेट और पान का चस्का सा लग गया था ।
गैंडे के फरमान से राजेश घबराया हुआ था, घर पर तो कह नहीं सकता था और आत्मसम्मान भी आड़े आ रहा था । इस मामले को पान की दुकान पर डिसकस किया जा रहा था कि कैसे राजेश भाई को इस समस्या से छुटकारा दिलाया जाय । वार्तालाप जारी था :-
एक मित्र : अमां राजेश ! क्यों न तुम छाग्गन ( पान वाला ) को बाप बना कर गैंडे के सामने ले जाओ ?
दुसरे मित्र ने शंका व्यक्त की : नहीं यार छग्गन से बाप का रोल नहीं होगा, अगर गैंडे ने अंगरेजी में बात करनी शुरू कर दी तो छग्गन भाई हड़बड़ा कर पोल खोल देंगे ।
पहला : तो तुम्ही बताओ क्या करें ?
राजेश ने बात का सिरा पकड़ते हुए कहा : यार और कोई चारा भी तो नहीं है , छग्गन भैया हमारी मदद करो यार |
छ्ग्गन : न भैया हमसे ई सब न होई , तुम्हरे स्कूल के कितनो मास्टर हमका चीन्हत हैं , कहु कोऊ पकड़ लेई तो हमहूँ के जूता मारी ।
राजेश : नहीं छ्ग्गन भैया तुमको तो गैंडे के पास ही जाना है दूसरे गुरूजी तुम्हें नहीं देख पाएंगे "
छ्ग्गन : पर भैया हमरे पास तो कपड़ा न लत्ता कैसे जैबे ? हमरे हाथौ कत्था से लाल हैं कैसन छुपाइब ?
राजेश : यार ! तुम्हारे साथ में रहूंगा ही, तुम बस मास्साब मास्साब कहते रहना बाकी में संभाल लूंगा । एक बार बस गैंडा उल्लू बन जाय तो काम बन जाएगा । जहां तक कपडे वगैरह की बात है में दुकान से बढ़िया चिकन का कुर्ता पैजामा ला दूंगा और एक चमरौंधा यहीं लालबाग से खरीद लेंगे , काम बन जाय तो ये सब तुम्हारा और पचास रूपये अलग से ।
छ्ग्गन : पर भैय्या कहूँ कुछ गड़बड़ा गया तो ?
राजेश : तुम फिकर न करो छ्ग्गन भाई ! बस एक्टिंग में कोई कमी न रहे , ज्यादा मत बोलना , लल्लू भी बने मत रहना, आखिर मुझ जैसे स्मार्ट के बाप बन कर जाओगे ।
तो इस प्रकार तय हुआ कि भाई राजेश को छ्ग्गन भाई वैतरणी पार लगायेंगे । तब वहां किसी मसखरे ने नारा लगाया , " अबे गैंडे रहो होशियार , छ्ग्गन भाई हैं तैयार । तय समय में राजेश अपनी दुकान से बुर्राक कुर्ता पजामा ले आया, एकचमचा चमरोंधा खरीद कर ले आया . पूरे नाटक की स्क्रिप्ट लिखी गई और कई बार उसका रिहर्सल किया गया , छ्ग्गन भाई को ताकीद की गई कि किसी भी कमजोर पल में अपनी जुबान बंद रखें और राजेश को स्थिति सम्भालने दें । स्क्रिप्ट में कुछ अंग्रेजी के भी शब्द थे जिन्हें छ्ग्गन भाई को रटा दिया गया था । स्टेज सज गई थी और छ्ग्गन भाई तैयार थे ।
राजेश पूरे आत्मविश्वास के साथ छ्ग्गन भाई को लेकर गैंडे के केबिन के पास पहुंचा , चिक उठाकर भीतर झांकते हुए बोला :
राजेश : मे आई कम इन सर ?
गैंडा ( प्रिंसिपल ) : यस कम इन, बोलो क्या बात है ?
राजेश : सर आपने फादर को लाने के लिए कहा था, वो आये हुए हैं
गैंडा : अरे तो उनको बाहर क्यों खडा किया हुआ है, भीतर लाओ !
छ्ग्गन भाई कुर्ता पजामा पहने सर पर सफ़ेद टोपी लगाए भीतर घुसे. गैंडा उनकी आगवानी करने के लिए उठ खड़ा हुआ , प्रेम से बोला :
गैंडा : आइये भसीन साहब आइये आपको कष्ट उठाना पड़ा , बैठिये . क्या लेंगे ठंडा गरम ?
छ्ग्गन : कुछ नहीं मास्साब , अभी दुकान से उठकर आयत है , मालूम पडा कि आप बुलाये हो
गैंडा : बेटे राजेश तुम बाहर जाओ हम लोग कुछ बातें करेंगे
छ्ग्गन : अरे नहीं मास्साब इनका यहीं रहे देव, इनहीं के सामने बताओ
गैंडा : हाँ भसीन साहब मैंने आप को इसलिए बुलाया है कि आपका वार्ड पढाई में ध्यान नहीं दे रहा है और स्कूल में क्लास कट करता है, छह माहीं एक्जाम में फेल है इसे कैसे बोर्ड की परीक्षा देने दें?
छ्ग्गन , राजेश की और देखते हुए : अरे ससुर तुम हमरे खानदान का नाम डुबोई दे रहे हो. घर से निकल के आवत हो कि स्कूल जाइत है पर यहाँ तुम्हरे यू लच्छन हैं , चलो आज घरे, तुम्हरी सब चर्बी छान्टित है|
गैंडा : अरे भसीन साहब ये तो आपको पहले करना था, अब इस समय ये सब कहने से क्या फ़ायदा , इसे इस साल ड्राप कराइये अगले साल देखा जायेगा|
अचानक छ्ग्गन भाई चमरोंधा उतार कर राजेश के ऊपर पिल पड़े और जोर जोर से कहने लगे , हमरे खानदान में यही एक नामुराद निकरा जो आज यह दिन देखे के मिला । यह देख कर गैंडा स्तब्ध रह गया और खिसिया कर बोला, अरे , अरे भसीन साहब रहने दीजिये बच्चा है आपका, माफ़ कर दीजिये , और राजेश को घुड़क कर बोला , देखा कितने परेशान हो गए तुम्हारे पिताजी, चलो तुम बाहर भागो, आप बैठिये भसीन साहब, ( फिर चपरासी के लिए घंटी बजाई, तब तक राजेश केबिन से बाहर आ चुका था)
राजेश हैरान था की जूते से पीटने का तो स्क्रिप्ट में कोई सीन नहीं था फिर छ्ग्गन को ये क्या सूझा, आने दो साले को बाहर, खबर लेता हूँ इसकी ।
हम सभी लोग पान की दूकान में छ्ग्गन का इन्तजार कर रहे थे, करीब आधे घंटे बाद छ्ग्गन आया और मुस्कुराता हुआ बोल, कहो कैसी रही, जमा दिया न मामला , प्रिन्सिपिल साहब बड़े भले आदमी हैं हमका चाय पिलाएँ , बिस्कुट खिलाएँ, चलो काम बन गवा।
गुर्राता हुआ राजेश छ्ग्गन की तरफ लपका : साले तुझसे कहा था ओवर एक्टिंग मत करना , साले मुझ पर चमरोंधा ले के पिल पडा |
छ्ग्गन : भैय्या ऊ न करती तो एक्टिंग माँ जान कैसे आव्त ?
इस तरह राजेश का काम बन गया । बाद में मालूम पड़ा कि छ्ग्गन भाई के केबिन से निकलने के बाद, प्लेट उठाने के लिए आये चपरासी ने गैंडे को सच बात बतला दी, पर गैंडे ने कोई एक्शन नहीं लिया |
क्या वो छ्ग्गन भाई की एक्टिंग से चमत्कृत रह गया था ?????????
राजेश भसीन के पिता की बहुत बड़ी कपडे की दुकान थी , जब हम लोग साइकिलों से स्कूल आया करते थे तो वह बाइक से आता था , माँ बाप का मुंह लगा था , जो कुछ भी मांगता उसे मिल जाता था, सभी पर रुआब गांठने के लिए खूब खर्च भी करता था । छह मांही में फेल हो गया था और क्लास में न आकर पान की दुकान पर मज़मा लगाया करता था , शौक शौक में हम लोग भी राजेश भाई की उदारता का फ़ायदा उठाया करते ,चाय समोसा , सिगरेट और पान का चस्का सा लग गया था ।
गैंडे के फरमान से राजेश घबराया हुआ था, घर पर तो कह नहीं सकता था और आत्मसम्मान भी आड़े आ रहा था । इस मामले को पान की दुकान पर डिसकस किया जा रहा था कि कैसे राजेश भाई को इस समस्या से छुटकारा दिलाया जाय । वार्तालाप जारी था :-
एक मित्र : अमां राजेश ! क्यों न तुम छाग्गन ( पान वाला ) को बाप बना कर गैंडे के सामने ले जाओ ?
दुसरे मित्र ने शंका व्यक्त की : नहीं यार छग्गन से बाप का रोल नहीं होगा, अगर गैंडे ने अंगरेजी में बात करनी शुरू कर दी तो छग्गन भाई हड़बड़ा कर पोल खोल देंगे ।
पहला : तो तुम्ही बताओ क्या करें ?
राजेश ने बात का सिरा पकड़ते हुए कहा : यार और कोई चारा भी तो नहीं है , छग्गन भैया हमारी मदद करो यार |
छ्ग्गन : न भैया हमसे ई सब न होई , तुम्हरे स्कूल के कितनो मास्टर हमका चीन्हत हैं , कहु कोऊ पकड़ लेई तो हमहूँ के जूता मारी ।
राजेश : नहीं छ्ग्गन भैया तुमको तो गैंडे के पास ही जाना है दूसरे गुरूजी तुम्हें नहीं देख पाएंगे "
छ्ग्गन : पर भैया हमरे पास तो कपड़ा न लत्ता कैसे जैबे ? हमरे हाथौ कत्था से लाल हैं कैसन छुपाइब ?
राजेश : यार ! तुम्हारे साथ में रहूंगा ही, तुम बस मास्साब मास्साब कहते रहना बाकी में संभाल लूंगा । एक बार बस गैंडा उल्लू बन जाय तो काम बन जाएगा । जहां तक कपडे वगैरह की बात है में दुकान से बढ़िया चिकन का कुर्ता पैजामा ला दूंगा और एक चमरौंधा यहीं लालबाग से खरीद लेंगे , काम बन जाय तो ये सब तुम्हारा और पचास रूपये अलग से ।
छ्ग्गन : पर भैय्या कहूँ कुछ गड़बड़ा गया तो ?
राजेश : तुम फिकर न करो छ्ग्गन भाई ! बस एक्टिंग में कोई कमी न रहे , ज्यादा मत बोलना , लल्लू भी बने मत रहना, आखिर मुझ जैसे स्मार्ट के बाप बन कर जाओगे ।
तो इस प्रकार तय हुआ कि भाई राजेश को छ्ग्गन भाई वैतरणी पार लगायेंगे । तब वहां किसी मसखरे ने नारा लगाया , " अबे गैंडे रहो होशियार , छ्ग्गन भाई हैं तैयार । तय समय में राजेश अपनी दुकान से बुर्राक कुर्ता पजामा ले आया, एकचमचा चमरोंधा खरीद कर ले आया . पूरे नाटक की स्क्रिप्ट लिखी गई और कई बार उसका रिहर्सल किया गया , छ्ग्गन भाई को ताकीद की गई कि किसी भी कमजोर पल में अपनी जुबान बंद रखें और राजेश को स्थिति सम्भालने दें । स्क्रिप्ट में कुछ अंग्रेजी के भी शब्द थे जिन्हें छ्ग्गन भाई को रटा दिया गया था । स्टेज सज गई थी और छ्ग्गन भाई तैयार थे ।
राजेश पूरे आत्मविश्वास के साथ छ्ग्गन भाई को लेकर गैंडे के केबिन के पास पहुंचा , चिक उठाकर भीतर झांकते हुए बोला :
राजेश : मे आई कम इन सर ?
गैंडा ( प्रिंसिपल ) : यस कम इन, बोलो क्या बात है ?
राजेश : सर आपने फादर को लाने के लिए कहा था, वो आये हुए हैं
गैंडा : अरे तो उनको बाहर क्यों खडा किया हुआ है, भीतर लाओ !
छ्ग्गन भाई कुर्ता पजामा पहने सर पर सफ़ेद टोपी लगाए भीतर घुसे. गैंडा उनकी आगवानी करने के लिए उठ खड़ा हुआ , प्रेम से बोला :
गैंडा : आइये भसीन साहब आइये आपको कष्ट उठाना पड़ा , बैठिये . क्या लेंगे ठंडा गरम ?
छ्ग्गन : कुछ नहीं मास्साब , अभी दुकान से उठकर आयत है , मालूम पडा कि आप बुलाये हो
गैंडा : बेटे राजेश तुम बाहर जाओ हम लोग कुछ बातें करेंगे
छ्ग्गन : अरे नहीं मास्साब इनका यहीं रहे देव, इनहीं के सामने बताओ
गैंडा : हाँ भसीन साहब मैंने आप को इसलिए बुलाया है कि आपका वार्ड पढाई में ध्यान नहीं दे रहा है और स्कूल में क्लास कट करता है, छह माहीं एक्जाम में फेल है इसे कैसे बोर्ड की परीक्षा देने दें?
छ्ग्गन , राजेश की और देखते हुए : अरे ससुर तुम हमरे खानदान का नाम डुबोई दे रहे हो. घर से निकल के आवत हो कि स्कूल जाइत है पर यहाँ तुम्हरे यू लच्छन हैं , चलो आज घरे, तुम्हरी सब चर्बी छान्टित है|
गैंडा : अरे भसीन साहब ये तो आपको पहले करना था, अब इस समय ये सब कहने से क्या फ़ायदा , इसे इस साल ड्राप कराइये अगले साल देखा जायेगा|
अचानक छ्ग्गन भाई चमरोंधा उतार कर राजेश के ऊपर पिल पड़े और जोर जोर से कहने लगे , हमरे खानदान में यही एक नामुराद निकरा जो आज यह दिन देखे के मिला । यह देख कर गैंडा स्तब्ध रह गया और खिसिया कर बोला, अरे , अरे भसीन साहब रहने दीजिये बच्चा है आपका, माफ़ कर दीजिये , और राजेश को घुड़क कर बोला , देखा कितने परेशान हो गए तुम्हारे पिताजी, चलो तुम बाहर भागो, आप बैठिये भसीन साहब, ( फिर चपरासी के लिए घंटी बजाई, तब तक राजेश केबिन से बाहर आ चुका था)
राजेश हैरान था की जूते से पीटने का तो स्क्रिप्ट में कोई सीन नहीं था फिर छ्ग्गन को ये क्या सूझा, आने दो साले को बाहर, खबर लेता हूँ इसकी ।
हम सभी लोग पान की दूकान में छ्ग्गन का इन्तजार कर रहे थे, करीब आधे घंटे बाद छ्ग्गन आया और मुस्कुराता हुआ बोल, कहो कैसी रही, जमा दिया न मामला , प्रिन्सिपिल साहब बड़े भले आदमी हैं हमका चाय पिलाएँ , बिस्कुट खिलाएँ, चलो काम बन गवा।
गुर्राता हुआ राजेश छ्ग्गन की तरफ लपका : साले तुझसे कहा था ओवर एक्टिंग मत करना , साले मुझ पर चमरोंधा ले के पिल पडा |
छ्ग्गन : भैय्या ऊ न करती तो एक्टिंग माँ जान कैसे आव्त ?
इस तरह राजेश का काम बन गया । बाद में मालूम पड़ा कि छ्ग्गन भाई के केबिन से निकलने के बाद, प्लेट उठाने के लिए आये चपरासी ने गैंडे को सच बात बतला दी, पर गैंडे ने कोई एक्शन नहीं लिया |
क्या वो छ्ग्गन भाई की एक्टिंग से चमत्कृत रह गया था ?????????
Kahani intresting hai... Lagta to aisa hi hai ki Gainda urrf Principal saab Acting dekhkar hi impress huye honge.
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