बहुत अफरातफरी मची हुई थी, गुप्ताजी रिजाइन कर चुके थे और खुराना जी को रीजनल हेड का चार्ज दिया गया था . रीजनल कानफ़्रेन्स की तैय्यारी की जा रही थी, खुराना जी कोई भी बिंदु नहीं छोडना चाहते थे, उनकी पहली कानफ़्रेन्स जो थी। उनके केबिन में अफसरो का जमावड़ा लगा हुआ था, अपने अपने सेक्सन के डाटा लेकर सब तैयार होकर आये थे, सभी से डिस्कस किया जा रहा था कि बिजनैस ग्रोथ क्या है ? इसमें और क्या सुधार किया जा सकता है , सब आकड़ों की बाजीगरी में उलझे हुए थे. सभी अपनी तरफ से अच्छे प्रेजेंटेशन के लिए नए नए सुझाव दे रहे थे.
शुक्ला जी हिन्दी अधिकारी को खुराना साहब कभी भी महत्व नहीं देते थे, उन्हें लगता था कि यह आदमी किसी भी काम का नहीं है और दिन भर बेकार की किताबें पढ़ता है, शुक्ला जी राजभाषा क्रियान्वयन समिति के सचिव थे उनके जिम्मे राजभाषा की प्रगति देखना भी था इसलिए वे सभी अधिकारियों की मासिक समीक्षा भी किया करते थे, खुराना जी का हिन्दी में हाथ तंग था , पंजाबी होने के नाते वे पंजाबी लहजे में हिन्दी बोलते थे. .
उसी दिन सुश्री महादेवी वर्मा का देहांत हुआ था, शुक्ला जी ने बड़े मनोयोग से सादे कागज पर काले हाशिये बना कर शोक सन्देश लिखा और केबिन के अन्दर प्रवेश किया, फ़ाइल के भीतर शोक सन्देश रख कर साहब को साइन करने के लिए दिया. शुक्ला जी को देखते ही खुराना जी का मन कडवा फ़ो गया, और बोले :-
खुराना जी :- ए की है ?
शुक्ला जी:- सर ! सुश्री महादेवी वर्मा जी का आज निधन हो गया है , इसलिए ये शोक सन्देश लिखा है कृपया इसमें साइन कर दीजिये,
खुराना जी :- महादेवी वर्मा ? ए केड़ी ब्रांच दी स्टाफ सी ?
शुक्ला जी :- सर, वो स्टाफ नहीं थीं , वो तो हिन्दी की महान कवियित्री थीं, वृद्धावस्था के कारण निर्बल हो गयो थीं,
खुराना जी :- वृद्धा? ऐ की हुंदा ?
एक चमचा : सर ! वृद्धा माने बुदिया होता है |
खुराना जी : ( खीजते हुए ) इत्थे रीजनल हेड कांफ्रेंस दे स्यापे कम है गे ने जो तुस्सी बुदिया सुडिया दा स्यापा ले आये हो |
और शुक्ला जी अपना सर झुकाए केबिन से बाहर निकल गए |
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