भाषा
आजकल संसद में भाषा के ऊपर उबाल आया हुआ है, आई ऐ ऐस की परीक्षा में अंग्रेजी भाषा के लिए 100 नंबर अलाट कर दिए गए हैं, उसका अभूतपूर्व विरोध देखने को मिला और सरकार को इस परिवर्तन को वापस लेना पड़ा । क्या उत्तरी राज्य और क्या दक्षिणी राज्य सभी एकमत से इसका विरोध कर रहे थे , सभी सोशल साइट्स पर भी लोगों ने जम कर भड़ास निकाली, सारे अखबार इन समाचारों से पटे पड़े थे । क्या यह छटपटाहट नहीं है ? जिस भाषा का सभी के बचपन में हव्वा खडा रहता था उस भाषा का आज के सन्दर्भ में क्या महत्व रह गया है, हमारे देश के सभी नौनिहाल इस भाषा के आतंक से गुजरते हैं चाहे वो कान्वेंट स्कूलों के बच्चे हों या ग्रामीण क्षेत्रों से आते हों, कान्वेंट स्कूलों में तो हिन्दी बोलने पर जुर्माना भी लगाया जाता है, इस भाषा को इतना महिमामंडित किया गया है कि इस भाषा पर कम पकड़ वाले अपने को हीन समझते हैं मुझे एक वाक्या याद आता है जब मूर्धन्य शायर फिराक गोरखपुरी जी से एक साक्षात्कार में पूछा गया कि इस समय इस देश में सबसे अच्छी अंग्रेजी कौन जानता है तो वे बोले कि मेरे बाद जवाहर लाल नेहरू ( फिराक साहब इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी के प्राध्यापक थे) जबकि वे उस समय पूरे विश्व में उर्दू के सबसे बड़े जानकार थे ।
हर एक भाषा की एक ग्रामर होती है, संज्ञा क्रिया , सर्वनाम इत्यादि, वाक्यों को चमकदार बनाने के लिए विशेषण भी लगा दिए जाते हैं, हिन्दी में इस पर कोई छल नहीं है, पर जब अंग्रेजी की बात आती है तो दिमाग भन्ना जाता है, I के साथ am you के साथ are और he के साथ is का प्रयोग क्यों होता है समझ में नहीं आता सर्वनाम से बनने वाले वाक्यों के लिए मेने एक हल निकाला मैंने माना कि अंग्रेज अपने को आभिजात्य वर्ग का समझता है तथा अपनी विशिष्टता बतलाना चाहता है, तो उसकी बात मानने के लिए कोई व्यक्ति खडा रहना चाहिए जिसे वो थोड़ा लालच देकर समझा सके यानी अपने को सर्वश्रेष्ठ मानते हुए सामने वाले को अपने से कुछ कम करते हुए अन्य जो दूर खडा है उसे निकृष्ट मानता है, अगर यह बात समझ में आ गई तो इस भाषा के बेसिक्स समझ में आ जायेगे : कैसे > कुछ उदाहरण दे रहा हूँ :
१. i के साथ am , have तथा plural की क्रियाएं लगती हैं ।
२. you के साथ are , have तथा plural वाली क्रियाएं लगती है ।
३. बेचारे he के साथ is, has तथा singular वाली क्रियाएं लगती हैं ।
अब उच्चारण पर आइये, daughter शब्द जो कि मूल रूप में दुख्तर है उसे डाटर कहते हैं , इसी तरह पतित पावनी गंगा को वे हमेशा ganges कहते हैं, । अगर यस भाषा के सामंतवाद की चर्चा करने लगें तो यह प्रकरण लंबा खिंच जाएगा,
आइये, अब हमारी संस्कृत को देखिये, इसके ग्रामर में ज्यादा पंगा नहीं है, संज्ञा, सर्वनाम और क्रिया के रूप याद कर लीजिये , वाक्य बनाते समय इन्हें कहीं भी रख दीजिये काम बन गया, पर यहाँ भी हमारे
विद्वानों ने पदच्छेद न कर एक ही में रख दिया जिससे यह क्लिष्ट हो गई है तथा अब प्रयोग से बाहर हो गई है ।
उर्दू की अपनी वर्जनाएं हैं, इसमें नुक्ताचीनी भरी है और उसके उच्चारण में भी अगर नुक्ता छूट गया तो समझिये मुल्लाओं ने आफत कर दी वैसे यह बड़ी प्यारी भाषा है अब ले दे कर हिन्दी ही बचती है, पर जो हिंदी राजभाषा के लिए प्रयोग होती है उसका तो भगवान् ही मालिक है, किसी सरकारी परिपत्र अथवा आदेश का राजभाषा रूपांतरण पढ़िए , आप माथा पीटते नजर आयेंगे।
सबके समझ में आने वाली और सरल सम्प्रेषण में सहायक भाषा ही असली भाषा है , समय बीतते मुख्य भाषा में अन्य भाषाओं के शब्द घुलते रहते हैं और एक प्रवाहमयी भाषा बनती जाती है जिसे अन्य भाषाओं के शब्दों को मिलाने में गुरेज़ नहीं होता । सोशल साइट्स पर प्रयोग्धार्मियों ने अपनी अलग ही भाषा का अन्वेषण कर लिया है जिसे वे धडल्ले से प्रयोग कर रहे हैं वहां किसी भी भाषा की शिष्टता का आतंक नहीं है । हर भाषा का अपना साहित्य है जो कालजयी है, जिस पर अनेकानेक फ़िल्में भी बनी हैं, आज से पच्चीस - तीस वर्ष पहले कुछ ही सिनेमाघरों में अंग्रेजी फ़िल्में लगती थी तथा इनका एक प्रबुद्ध दर्शक वर्ग होता था जो फिल्म के मध्य किसी हास्य प्रकरण पर शिष्टता से हंसता था और दुखभरे सीन्स पर चुपचाप संवेदना प्रकट करता था शेष समय वह शालीनता से बैठा रहता था, कभी गलती से अंग्रेजी में तंग हाथ वाला हाल के भीतर हो तो वह बेचारा सभी के हंसने के बाद अचानक हंसता था । चालाक व्यापारियों ने इस समस्या को जाना और फिल्म को हिंदी में डब कर दिया , अब यह बेचारा न रहां , ये सीना ठोककर फिल्म देखता है और उस पर कमेन्ट भी करता है अब चाहे यह डबिंग फूहड़ ही क्यों न हो ?
इसलिए अब वर्जनाएं टूट रही हैं कोई भी नहीं चाहता कि ये भाषा उन पर जबरदस्ती थोपी जाय और देश की सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा में इस भाषा के लिए 100 अंक रखे जांयें जो कि तथाकथित अभिजात्य वर्ग के लिए सरल हों ।
No comments:
Post a Comment