Thursday, 18 September 2014

विरहणी 

ओ , को छै तु  ! को छै , तसिकै नि आई कर ,
म्यार बेलम कनी , तसिकै नि झस्काई कर  ॥ 

अब बस  फाम रैगे , नि  लागन म्योरो मन ,
भूली गयूं द्याप्तन , भूली गयूं  मै - बाबन ,
मैं  अभागी  कनि  तसिकै  नि बोतयाई कर 
ओ , को छै तु  ! को छै , तसिकै नि आई कर ॥  ॥ 

ऊखल की धम -धम , मड़ुवौ  को मानणा ,
ग्यून में फटक लगूण , निंबुओ  को सानण ,
इथकै - उथकैकि सुनै  मैकणी नि अल्झाई कर ,
ओ , को छै तु  ! को छै , तसिकै नि आई कर ॥   ॥ 

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(बेलम - किसी तरह काम में मन लगना , झस्काई - डराना ,फाम-याद ,द्याप्तन -देवताओं को , बोतयाई-बहलाना , ऊखल -अनाज कूटने का पत्थर में चौड़ा छिद्र , मानणा  - पैरों से रगड़ना , फटक -बड़े चौड़े कपडे से फटकना , अल्झाई - उलझाना )

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