Saturday, 11 January 2014

दुष्यंत






कविवर  दुष्यंत जी आज के समय में कितने प्रासंगिक हैं , इस बात का प्रमाण  गत समय में हुई अभूतपूर्व घटनाओं से लिया जा सकता है  :-

अन्ना का आंदोलन  : भ्रष्टाचार  के खिलाफ दिल्ली में हुए अन्ना के                                      अनशन को व्यापक समर्थन मिला , उनके इस प्रयास                             को दुष्यंत जी के शब्दों में कुछ इस तरह पेश किया जा सकता है  : - 


"हो गई है पीर पर्वत सी , पिघलनी चाहिए ,
  इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए ,

 सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं ,
  मेरी कोशिश है कि , ये सूरत बदलनी  चाहिए " II 

दामिनी  से पहले दिल्ली  : दामिनी के साथ हुए बर्बर , वहशी  और                                                अमानवीय कृत्य पर समूचे देश में जो अहिंसक                                     आंदोलन हुआ उससे दिल्ली शहर के युवाओं  ने                                      सरकार की चूलें हिला दीं , तब दिल्ली कैसा था                                    उस पर दुष्यंत जी  के ये उदगार कितने सटीक बैठते हैं  :-

"गिड़गिड़ाने का यहाँ कोई असर होता नहीं ,
पेट भर कर गालियां दो , आह भर कर बददुआ ,

इस शहर में तो कोई बारात हो या वारदात ,
अब किसी भी बात पर , खुलती नहीं हैं खिड़कियाँ 

यहाँ तो सिर्फ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं,
खुदा जाने यहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा "

दामिनी के महाप्रयाण के बाद  :

"कैसी मशालें ले के चले तीरगी में आप ,
जो रोशनी थी वो भी सलामत नहीं रही "

हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग,
रो - रो के बात कहने की आदत  नहीं रही  "

"आप" का  उद्भव  : भ्रष्टाचार के खिलाफ अरविन्द केजरी वाल  की हुंकार                               पर दुष्यंत जी की ये लाइनें  उनके इस प्रयास  की                                  जिजीविषा को क्या खूब दर्शाती हैं :

"इस नदी की धार से , ठंड़ी हवा आती तो है  ,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है "

एक चिंगारी कहीं से ढूढ़ लाओ दोस्तों ,
इस दीये में तेल से भीगी हुई बाती तो है " 

" ये जो शमशीर है, पलकों से उठा लो यारो ,
अब कोई ऐसा तरीका भी निकालो यारो"

"कैसे आकाश  में सुराख हो नहीं सकता ,
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो  "

"आप" पर नेशनल  पार्टियों का कटाक्ष  : "आप" के द्वारा इलेक्सन लड़ने                                                         पर कांग्रेस और बीजेपी सहित                                                             अन्य  तथाकथित महान नेताओं                                                        के उदगार  को दुष्यंत जी के शब्दों                                                        में कुछ इस तरह समेकित किया जा                    सकता है :-


होने लगी है जिस्म में जुम्बिश तो देखिये ,
इस परकटे परिंदे की कोशिश तो देखिये "

गूँगे निकल पड़े हैं जुबां  की तलाश में,
सरकार के खिलाफ , ये साजिश तो देखिये" 


"आप" के विश्वाश मत पर सदन में बीजेपी :

"तुम्हारे पाँव के नीचे कोई जमीं  नहीं,
कमाल ये है कि फिर भी तुझको यकीं नहीं "


"आप" के विश्वाश मत पर सदन में कांग्रेस  :

"तुझे कसम है खुदी को इतना हलाक न कर ,
तू इस मशीन का पुर्ज़ा है मशीन नहीं "

"आप" की सरकार :       सदन में विश्वाश मत हासिल  करने के बाद                                          सरकार  चलाने और सी एम् आवास  पर उठे बवाल पर केजरीवाल  :

"इस सिरे से उस सिरे तक, सब शरीके जुर्म हैं,
आदमी या तो जमानत पर रिहा है या है फरार"

रौनके जन्नत ज़रा भी मुझको रास आई नहीं ,
मैं जहन्नुम में बहुत खुश था मेरे परवरदिगार"


आम  आदमी  :  कौन है और क्या है आम आदमी  ?  आज कल के हालात                        क्या हैं, दुष्यंत  जी की  इन लाइनों  में सहज ही दिख                              जाएगा  :

"कल नुमाइश में मिला था चीथड़े पहने हुए,


मैंने पूछा नाम , तो बोला 'हिंदुस्तान' है "

""ये सारा जिस्म बोझ  से झुक कर दोहरा हुआ होगा 
मैं सजदे में नहीं था, आपको धोखा हुआ होगा "

"दुकानदार तो मेले में लुट गए यारो,
तमाशबीन दुकानें सजा के बैठ गए,"

कहाँ तो तय था चिरागां  हर एक  घर के लिए,
कहाँ चिराग मय्यसर नहीं  शहर के लिए "

चले हवा तो किवाड़ों को बंद कर लेना,
ये गर्म राख शरारों में ढल न जाए कहीं"

1 comment:

  1. Bahut khoob chacha.......kavivar dushyant aur aap ka mel.......prashansaniya....

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