कविवर दुष्यंत जी आज के समय में कितने प्रासंगिक हैं , इस बात का प्रमाण गत समय में हुई अभूतपूर्व घटनाओं से लिया जा सकता है :-
अन्ना का आंदोलन : भ्रष्टाचार के खिलाफ दिल्ली में हुए अन्ना के अनशन को व्यापक समर्थन मिला , उनके इस प्रयास को दुष्यंत जी के शब्दों में कुछ इस तरह पेश किया जा सकता है : -
"हो गई है पीर पर्वत सी , पिघलनी चाहिए ,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए ,
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं ,
मेरी कोशिश है कि , ये सूरत बदलनी चाहिए " II
दामिनी से पहले दिल्ली : दामिनी के साथ हुए बर्बर , वहशी और अमानवीय कृत्य पर समूचे देश में जो अहिंसक आंदोलन हुआ उससे दिल्ली शहर के युवाओं ने सरकार की चूलें हिला दीं , तब दिल्ली कैसा था उस पर दुष्यंत जी के ये उदगार कितने सटीक बैठते हैं :-
"गिड़गिड़ाने का यहाँ कोई असर होता नहीं ,
पेट भर कर गालियां दो , आह भर कर बददुआ ,
इस शहर में तो कोई बारात हो या वारदात ,
अब किसी भी बात पर , खुलती नहीं हैं खिड़कियाँ
यहाँ तो सिर्फ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं,
खुदा जाने यहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा "
दामिनी के महाप्रयाण के बाद :
"कैसी मशालें ले के चले तीरगी में आप ,
जो रोशनी थी वो भी सलामत नहीं रही "
हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग,
रो - रो के बात कहने की आदत नहीं रही "
"आप" का उद्भव : भ्रष्टाचार के खिलाफ अरविन्द केजरी वाल की हुंकार पर दुष्यंत जी की ये लाइनें उनके इस प्रयास की जिजीविषा को क्या खूब दर्शाती हैं :
"इस नदी की धार से , ठंड़ी हवा आती तो है ,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है "
एक चिंगारी कहीं से ढूढ़ लाओ दोस्तों ,
इस दीये में तेल से भीगी हुई बाती तो है "
" ये जो शमशीर है, पलकों से उठा लो यारो ,
अब कोई ऐसा तरीका भी निकालो यारो"
"कैसे आकाश में सुराख हो नहीं सकता ,
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो "
"आप" पर नेशनल पार्टियों का कटाक्ष : "आप" के द्वारा इलेक्सन लड़ने पर कांग्रेस और बीजेपी सहित अन्य तथाकथित महान नेताओं के उदगार को दुष्यंत जी के शब्दों में कुछ इस तरह समेकित किया जा सकता है :-
होने लगी है जिस्म में जुम्बिश तो देखिये ,
इस परकटे परिंदे की कोशिश तो देखिये "
गूँगे निकल पड़े हैं जुबां की तलाश में,
सरकार के खिलाफ , ये साजिश तो देखिये"
"आप" के विश्वाश मत पर सदन में बीजेपी :
"तुम्हारे पाँव के नीचे कोई जमीं नहीं,
कमाल ये है कि फिर भी तुझको यकीं नहीं "
"आप" के विश्वाश मत पर सदन में कांग्रेस :
"तुझे कसम है खुदी को इतना हलाक न कर ,
तू इस मशीन का पुर्ज़ा है मशीन नहीं "
"आप" की सरकार : सदन में विश्वाश मत हासिल करने के बाद सरकार चलाने और सी एम् आवास पर उठे बवाल पर केजरीवाल :
"इस सिरे से उस सिरे तक, सब शरीके जुर्म हैं,
आदमी या तो जमानत पर रिहा है या है फरार"
रौनके जन्नत ज़रा भी मुझको रास आई नहीं ,
मैं जहन्नुम में बहुत खुश था मेरे परवरदिगार"
आम आदमी : कौन है और क्या है आम आदमी ? आज कल के हालात क्या हैं, दुष्यंत जी की इन लाइनों में सहज ही दिख जाएगा :
"कल नुमाइश में मिला था चीथड़े पहने हुए,
मैंने पूछा नाम , तो बोला 'हिंदुस्तान' है "
""ये सारा जिस्म बोझ से झुक कर दोहरा हुआ होगा
मैं सजदे में नहीं था, आपको धोखा हुआ होगा "
"दुकानदार तो मेले में लुट गए यारो,
तमाशबीन दुकानें सजा के बैठ गए,"
"दुकानदार तो मेले में लुट गए यारो,
तमाशबीन दुकानें सजा के बैठ गए,"
कहाँ तो तय था चिरागां हर एक घर के लिए,
कहाँ चिराग मय्यसर नहीं शहर के लिए "
चले हवा तो किवाड़ों को बंद कर लेना,
ये गर्म राख शरारों में ढल न जाए कहीं"
चले हवा तो किवाड़ों को बंद कर लेना,
ये गर्म राख शरारों में ढल न जाए कहीं"
Bahut khoob chacha.......kavivar dushyant aur aap ka mel.......prashansaniya....
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