मन मा भरम उपजी गो कतुक रावण छन यो जग मे,
हर साल एक फ़ूक्नू , फिर उपजी जान्छ अघण ,
डाड्यू मा कानन मा , तली मली छानन मा ,
भिड मा गाडन मा अन्यार उड्यारन मा ,
बाट कुबाट हर जाग एक रावण छ
पोर साल परार साल , फ़ूकनू हर साल,
नांनछना, फिर जवान हेभे , अब तू बुडी गया,
आपुणो फुकन आयो, रावण न फूकी सक्या,
इतुक बरस हेगे, खल्ली लागी भया ,
सामुणि नि भे यो, मन मा लुकी भयो,
जब तक भ्यार नि आयो, कसी फुकी जाछी ,
मन को भरम कूछा मन मा रैइ गयो
No comments:
Post a Comment