अचानक मेरी नींद खुल गई, हाथघड़ी पर नज़र डाली तो सुबह के सात बज रहे थे, हड़बड़ा कर गीता को जगाया और बोला कि तुम तो सोती रह गईं , ये तो सात बज गए हैं वेटर ने भी हमें नहीं जगाया, फिर गुस्से में मैंने घंटी जोर से दबाई, काफी देर बाद आँखें मलता हुआ होटल का बैरा आया, गोवानी में कुछ बुदबुदाता हुआ बोला, " क्या बात है ? क्यों इतनी रात को आफत मचाये हुए हो ? आधी रात ? मैं जोर से चिल्लाया , अबे तुझे सुबह पांच बजे उठाने को कहा था , ये सात बज रहे हैं , तेरी वजह से हमारी फ़्लाइट छूट गई है कमीने !!! मेरी हिंदी को कुछ कुछ समझता हुआ वह बोला , " watch your watch man !! it is only half past one of midnight, now go to sleep " फिर गोवानी में कुछ गरियाता हुआ चला गया , सकपका कर मैंने घडी देखी तो रात के डेढ ही बजे थे, शायद जल्दीबाजी में मैंने घड़ी को उल्टा पकड लिया था जिससे मुझे रात के डेढ बजे की जगह पर सुबह के सात बजे का समय दिख रहा था ।


वर्ष १९९० , हमारी बंबई यात्रा का एक पडाव गोवा भी था जहां तीन दिन घूमने के बाद हमें बंबई आना था , समय की बचत के लिए मैंने हवाई जहाज से गोवा से बंबई की यात्रा करने की सोची थी , शाम को ही मैंने अपने होटल के एजेंट से हवाई जहाज के टिकट मंगवा लिए थे, तीन टिकटों के चौदह सौ रुपये उसे दिए थे , उस पर उसने पचास रुपये प्रति टिकट अपना मेहताना लिया था , लोबो (एजेंट) ने मुझसे यह भी कहा था कि उसकी जहाज के कैप्टन से बात हो चुकी है वह आप लोगों को खिडकी की सीट दे देगा । सारा सामान रात में ही पैक कर लिया गया , विभोर के लिए कुछ बिस्कुट भी रख लिए गए थे , रात डेढ बजे के प्रकरण के बाद सुबह पांच बजे उस गोवानी वेटर ने हमें जगाया , और हम तैयार होकर एयरपोर्ट की बस पकडने के लिए नीचे सडक पर आ गए , जैसा लोबो ने हमें बताया था कि जहाज के टिकट दिखा कर बस वाला हमें फ्री में एयर पोर्ट छोड देगा । एयरपोर्ट पहुंचते ही मैंने लम्बी लाइन लगी देखी और मन में सोचा , चलो फ्लाईट तो मिल गई, हम लाइन में लग गए, लोग अंग्रेजी या गोवानी में बातें कर रहे थे, उनमें हिन्दी बोलने वाले बहुत कम थे । हमारा नंबर आते ही गेट पर खडा आदमी बोला टिकट नहीं बोर्डिंग पास दिखाइये , मैं बोला बोर्डिंग पास ? ये क्या होता है, वो कुछ झुंझलाया हुआ था मुझसे बोला, ' अरे भाई उधर जा कर बोर्डिंग पास बनवाइए, ये कनफर्म्ड लोगों की लाइन है।

मैं बोर्डिंग पास वाली खिडकी पर पहुंचा, वहां टिकट दिखा कर बोला, इन पर बोर्डिंग पास जारी कर दीजिये खिडकी पर बैठा आदमी मुझसे बोला अभी बोर्डिंग नहीं की जा रही है , दो फ्लाईट अभी पेंडिंग हैं बंबई से जहाज आने पर वे जायेंगी उनके जाने के बाद ही बोर्डिंग शुरू की जायेगी , हताश होकर मैंने उससे मिन्नतें करनी शुरू कर दीं कि परसों मेरी ट्रेन की बुकिंग बंबई से लखनऊ तक की है, अगर हम समय से बंबई तक नहीं पहुंचे तो हमारी ट्रेन मिस हो जायेगी , उसने बवाल टालने की गरज से कहा कि आप एयरपोर्ट अथार्टी से बात कर लें, मेरे जैसे कुछ और लोग भी थे सब को लेकर में एयरपोर्ट अथार्टी के पास पहुंचा और उनसे अपनी व्यथा कही, वे बोले देखिये सर बंबई में इंजीनियरों की हड़ताल की वजह से सुबह से कोई भी फ्लाईट गोवा नहीं पहुंची है , सुबह चार बजे और छह बजे की फ्लाईट के पैसेंजर भी ऊपर बैठे हुए हैं , उनको बोर्डिंग पास दे दिए गए हैं उनके जाने के बाद ही हम अगले बोर्डिंग जारी करेंगे, हाँ यदि फ्लाईट जारी हो जाती हैं तो में आपको सबसे पहले बोर्डिंग जारी कर दूँगा , उसने हमारे टिकट नंबर नोट कर लिए और बाहर लाउंज में बैठने को कहा ।
करीब नौ बजे सुबह से हम लाउंज में बैठ गए , विभोर इधर उधर दौड रहा था उसे यहाँ बहुत मजा आ रहा था, बीच बीच में गीता उसे बिस्कुट खिलाती जा रही थी , हम लोग बैठ कर इस परिस्थति पर चर्चा कर रहे थे । दोपहर का एक बज गया था अब भूख भी लगने लगी थी, मैंने विभोर से पूछा कि वो क्या खायेगा ? उसने शायद एक काउण्टर पर खाने पीने की चीजें देख ली थीं वह बोला, " पापा आमलेट खाउंगा ", मैंने काउण्टर पर जाकर पूछा कि एक आमलेट कितने का दे रहे हो ? वो बोला। " पच्चीस रूपये का " मैं घबडा गया, पच्चीस रूपये !!!! इतने में तो हम सभी पेटभर कर खाना खा सकते हैं और उदार होकर टिप भी दे सकते हैं , पर विभोर मचल गया और आमलेट खाने की जिद करने लगा , गुजरते हुए पोर्टर से मैंने पूछा कि क्या एयरपोर्ट के बाहर भी खाने की कुछ व्यवस्था है, वह बोला कि बाहर जा कर ठेले पर कुछ मिल सकता है, मैं बाहर आया और दूर खडा ठेला मुझे दिखा मैं उसके पास पहुंचा , और पूछा कि खाने में कुछ मिलेगा ? वो बोला बंद, मक्खन, चाय, रस्क सभी कुछ है क्या खायेंगे, उसकी बोली सुनकर मुझे लगा कि वह शायद हिन्दी क्षेत्र से है , मैंने जिज्ञासा वश पूछा तो वह बोला मैं U.P. से हूँ , मैंने फिर बात बढाते हुए पूछा कि UP में कहाँ से हो ? वह बोला कि साहब में गोण्डा से हूँ, सुनकर मुझे बहुत ख़ुशी हुई, तत्काल ही मैंने कहा कि मैं लखनऊ से हूँ, यह सुनकर वह बडा प्रसन्न हुआ और बोला कि साहब बोलिए खाने में क्या दे दूँ, बहुत दिनों बाद अपने देश का कोई आदमी दिखा है, मैंने कहा क्या आमलेट दे सकते हो ? वह बोला क्यों नहीं अभी बनाए देता हूँ, दो दो अण्डों का आमलेट बनवा कर उसे बारह रूपये देकर में अन्दर आया और हम सभी ने मिल कर भरपेट खाया ।

चार बज गए थे अभी तक बंबई से कोई भी जहाज नहीं आया था , मैं फिर अथारटी के पास गया और उससे फिर जिरह की , वह बोला बेहतर यह होगा कि आप अपना टिकट वापस कर पैसे ले लें और किसी अन्य साधन से बंबई जाएँ , मेरे हाथों के तोते उड गए , तत्काल में टिकट विण्डो पर पहुंचा और टिकट देकर अपने पैसे वापस मांगे, पर वह बोला कि जिस एजेंसी से यह टिकट लिया गया है वहीं से पैसे वापस होंगे , अब मुझे यह भी मालूम नहीं था कि लोबो ने यह टिकट गोवा में किस एजेंसी से खरीदे हैं, मैंने टिकट खिडकी पर फिर पूछा कि क्या वे बता सकते हैं कि ये टिकट किस एजेंसी से खरीदे गए हैं, उसने मुझे एजेंसी का नाम बता दिया, हम लोग जल्दी से बाहर आये और गोवा जाने के लिए एक टैक्सी तय करने लगे तभी एक संभ्रांत सा दिख रहा व्यक्ति मेरे पास आया और बोला कि क्या वो हमारे साथ गोवा तक शेयर कर सकता है ? अनमने भाव से मैंने हाँ कह दिया, रास्ते में वह बताने लगा कि सुबह से ही वह पहली फ्लाईट के लिए एयरपोर्ट पर खडा था, जब ये लगा कि अब फ्लाईट रिस्टोर नहीं होगी तो उसने टिकट वापस कर पैसे लेकर घर जा रहा है, मैंने उससे कहा कि टिकट तो हम भी वापस करना चाहते हैं पर ये शायद किसी एजेंसी से खरीदा गया है इसलिए वो ही पैसा वापस करेंगे , वह हंसते हुए बोला अब इस समय एजेंसी के पास पैसा कहाँ धरा होगा ? वो तो शाम तीन बजे तक अपनी बिक्री बैंक में जमा कर देते हैं , मैंने उसे बताया कि बंबई से हमारी ट्रेन है अगर आज बंबई नहीं गए तो हमारी ट्रेन छूट जायेगी, हमारी परेशानी को देखकर वह बोला दिखाइये किस एजेंसी से ये टिकट लिए गए हैं , मैंने उसे बताया तो वह बोल कि यह एजेंसी तो उसके मित्र की है, चलो कोशिश करते हैं शायद इतनी रकम उसके पास हो । एजेंसी पहुँच कर उस भले मानुष ने उनसे गोवानी में बात की और हमारे पैसे लौटवा दिए, उसका धन्यवाद कर हम बस स्टेशन आ गए और किसी तरह जुगाड कर बंबई की बस में टिकट ले लिया , इस तरह जो यात्रा पैतालीस मिनट की होनी थी उसे पूरा करने में पूरा एक दिन और एक रात लग गई । मेरी हवाई यात्रा टांय - टांय फिस्स हो गई, इसका श्रीगणेश नहीं हो पाया ।
आज तेईस साल बाद हवाई यात्रा का एक मौक़ा फिर आया , जब जगदा ने जोधपुर में उसके आवास पर श्रावणी उपाकर्म महोत्सव में सम्मिलित होने का निमंत्र्ण दिया , यह चर्चा श्रीनाथजी विहार में हो रही थी , जगदा ने पूछा कि कौन कौन इस महोत्सव में भाग लेना चाहता है, मेरे घर में पहली बार इसका आयोजन किया जा रहा है, शद्दा (डाक्टर साहब) बोले वे लोग तब उदयपुर में होंगे वे वहीं से जोधपुर चले आयेंगे, मेरी तरफ इशारा कर के बोले कि ये भी आ सकता है , मैंने कहा आफिस में छुट्टी के लिए कोशिश करने के बाद ही कोई फैसला लिया जा सकता है, उन्होंने सलाह दी कि क्यों न हवाई जहाज से जोधपुर चले जाते हो, मैंने कहा देखूँगा । इस तरह हवाई यात्रा का कीडा उनहोंने जगा दिया और वे उदयपुर को चले गए । पुनीत बार बार फोन कर के पूछता कि चाचा जल्दी बताइये तो आपका ई टिकट करवा देता हूँ , अंत में छुट्टी इत्यादि का इंतजाम होने के बाद पुनीत को टिकट के लिए हामी भर दी । टिकट बुक करने के लिए पुनीत आशियाना आ गया और कम्प्यूटर पर टिकट बुक करने लगा, पेमेंट करते समय मेरा डेबिट कार्ड फेल हो गया तब पुनीत ने अपने खाते से इण्टर्नेट बैंकिंग की सहायता से टिकट बुक कराया, पर ये क्या ? उसका खाता तो डेबिट हो गया पर टिकट की कन्फर्मेशन नहीं आयी , क्या मेरे ग्रहों में और हवाई यात्रा के ग्रहों में खडकाश्टक तो नहीं ? खैर बाद में उसने फिर से बुकिंग कराई और अंततोगत्वा टिकट बुक करा लिया गया , फिर शुरू हुआ हवाई यात्रा को करने के लिए पाठ्यक्रमों का दौर, एक घंटे पुनीत ने समझाया, फिर मोहल्ले में भी लोग कम न थे, हर एक ने अपनी अपनी हिदायते दीं , उदयपुर से शद्दा पुनीत को फोन पर पूछते कि तुमने इन लोगों को दिल्ली के इंदिरागांधी अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट के T-3 टर्मिनल के बारे में बता दिया है कि नहीं ?

खैर, समय आने पर यात्रा शुरू हुई, अमौसी एयरपोर्ट पर बोर्डिंग लेते समय अपने सामान को चेक इन किया वहां पर खडा पोर्टर बोला अब ये सामान आपको उदयपुर में मिलेगा , मैंने उसे टोकते हुए कहा कि भाई हम तो जोधपुर जा रहें हैं तुम गलती से हमारा सामान उदयपुर न भेज देना, वह सारी - सारी कह कर बोला ये सामान जोधपुर में मिलेगा, निश्चिन्त होकर हम अपने गेट पर आ गए जहां से हमें जहाज में बैठना था , समय पर हमें जहाज में बिठा दिया गया और यह दिल्ली के लिए उड चला , बिना रिक्वेस्ट के ही गीता को खिडकी वाली सीट मिल गई उसने इस यात्रा का खूब आनंद उठाया , केवल पचपन मिनट में ही हम दिल्ली लैण्ड कर गए , चूंकि अगले पैंतालीस मिनट में ही हमारी जोधपुर की फ्लाईट थी और सामने खडा था बहुचर्चित टर्मिनल थ्री , ऊपर लगे संकेतों को देखते हुए हम अपने जोधपुर यात्रा के गेट तक आ गए, कोई परेशानी नहीं हुई , दिल्ली से जोधपुर की यात्रा के दौरान खिड़की वाली सीट पर मैं बैठा , पर मेरे भाग्य में इस सीट से बाहर देखने पर जहाज के विंग्स ने अधिकतर नज़ारा छुपा लिया था , जोधपुर में जगदा हमें लेने एयरपोर्ट आये थे , हम कन्वेयर बेल्ट पर खड़े थे, एक अटैची तो आ गई पर बैग कहीं नहीं दिख रहा था, काफी देर खड़े रहने के बाद एक सिक्योरिटी वाली महिला आयी और हमारी परेशानी भांप कर बोली कि अपने खोये हुए बैग के लिए
एयरलाइन्स के दफ्तर में रिपोर्ट करें, सारी जांच करने के बाद
एयरलाइन्स का अधिकारी बोला कि आपका बैग दिल्ली में छूट गया है, ये अब अगली फ्लाईट से आएगा आप अपना लोकल एड्रेस लिखवा दें वहां दो घंटे में इसे पहुंचा दिया जाएगा , हम घर आ गए,
एयरलाइन्स वाले उस दिन बैग नहीं लाये और पूछने पर बताया कि बैग कल दोपहर तक आ पायेगा । मैं समझ गया कि
लखनऊ एयरपोर्ट के वेंडर ने यह बैग उदयपुर भेज दिया है, खैर दूसरे दिन एक बड़ी वेंन में आकर एयरलाइन्स वाले बैग दे गए , इस प्रकार एक यात्रा में कई अनुभव हो गए, मैंने मन में सोचा चलो कम से कम हवाई यात्रा का श्रीगणेश तो हुआ, भले ही इसमें तेईस साल लग गए
पैली ऐसि यात्राकि बात कुछ और छी महराज ,
पर आज कल देखौ " कौ जहाज , कुकुर जहाज "
( It is correct that economy class is Shashi Tharur's cattle class )
जोधपुर में मेरे पाण्डित्य को , शद्दा ने खूब किया महिमा मण्डित ,II II
खोद - खोद कर मेरा नाम रख दिया जहाजी पण्डित II II
इति
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