Tuesday, 6 August 2013

प्राण

डालीगंज  में जिस मकान 'देवी निवास ' में हम रहा करते थे, वो तब किराए पर लिया गया था जब हम सभी रानीखेत से लखनऊ आ गए थे । इससे पूर्व बाबू, ठुल्दाज्यू और नन्दाज्यू , तीनों मिश्राजी वकील के मकान में किराए पर रहते थे । मिश्राजी से बाबू की हुक्के वाली मित्रता थी, उनके मकान से देवी निवास आ जाने पर भी मिश्राजी अक्सर चले आते और बाबू के साथ हुक्के के कश लगाते , उनके पुत्रों में प्रकाश भाई साहब और ओम  भाई साहब भी आते जाते रहते थे । 

बाबू प्रकाश भाई साहब के साथ " राम और श्याम " पिक्चर देख कर आये और फिल्म की बहुत तारीफ़ की । शायद ठुल्दाज्यू इस फिल्म को पहले देख चुके थे इसलिए उन्होंने कहा कि यह फिल्म बच्चों के देखने लायक है । दूसरे दिन उन्होंने  मुझे कुछ पैसे दिए और कहा कि जा लालू को यह फिल्म दिखा ला । तब अमीनाबाद में नाज़ पिक्चर हाल में यह फिल्म लगी हुई थी , सबसे आगे की सीट के लिए टिकट नहीं मिलते थे , टिकट खिडकी पर हाथ डालो, साठ पैसे दो, और टिकट बाबू आपके हाथ में गीला कपडा फेर कर उस पर कोपीयिंग पेन्सिल से नंबर लिख देता और एक गोल मोहर लगा देता । हाल में घुसते समय गेटकीपर हाथ देखता और टोर्च से सीट की और इशारा करता, और बन्दा अपनी सीट पर बैठ जाता, अब गेट में घुसाने से पहले गलती से उसके हाथ से यह मिट गया तो उसका भाग्य । सभी बहुत सावधानी से हाथ को किसी भी दुर्घटना से बचाए रहते, यदि कोई मित्र मिल भी गया तो उससे हाथ नहीं मिलाते, मुंह से ही खैर पूछ ली जाती, अधिकतर तो वो मित्र भी इसी दशा में रहता इसलिए वह भी पूरी सावधानी बरतता , खैर ……………। 



फिल्म देखने के बाद हम घर वापस आ गए, दूसरे दिन इतवार था, प्रकाश भाई साहब आये हुए थे, वे सिग्रेट पीने शौकीन थे, बाबू और वो बैठक के कमरे में बैठे थे, तभी प्रकाश भाई साहब ने पानी माँगा, बाबू ने अन्दर की और मुंह करके कहा कि , " एक गिलास पानी भेजो" , ईजा ने दो गिलास पानी ट्रे में रख कर लालू से कहा कि जा कर इसे बैठक मे दे आ,  पर लालू ने घबरा कर कहा कि मैं नहीं जाऊँगा , बहुत पूछने पर उसने बताया कि उसे प्रकाश भाई  साहब से डर लगता है. ईजा ने कहा कि कल तक तो तू उनके पास  चला जाता था आज तुझे क्या हो गया है, वह रुधे  गले से बोला कि कल जो पिक्चर देखी थी , ये उस जैसा दिखता  है । दरअसल , प्रकाश भाई साहब काफी कुछ प्राण की तरह लगते थे ,लम्बी नाक उस पर अण्डर  लाइन  मूंछें , बडी - बड़ी  आँखें और खनकती आवाज़ , और उनके अंदाज में एक अकड भी हुआ करती थी । 

यह वाकया यह बताने के लिए काफी है कि कितना जीवंत अभिनय हुआ करता था प्राण साहब का ! वे परदे पर अभिनय करते पर उनकी निगेटिव छवि इतनी शानदार होती थी कि उनके जैसे दिखने वाले व्यक्ति से भी लोग खौफ खाते थे, तब फिल्मों में इतनी मारकाट या आजकल के वीभत्स दृश्य नहीं हुआ करते थे, केवल डायलाग डिलीवरी या चेहरे के हावभाव से ही अच्छी या बुरी एक्टिंग की जाती थी, अपने चहरे से कटुता, दुष्टता या भयानकता के प्रदर्शन में प्राण साहब को कमाल हासिल था, …हिन्दी  सिनेमा के इतिहास में विलेन का " न भूतो न भविष्यति " रोल प्राण साहब ही निभा सकते थे , ऐसे अद्भुत कलाकार को लाखों सलाम …. 

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