पिकनिक
डालीगंज में बित़ाये गए समय में कई संस्मरण ऐसे हैं जो भूले नहीं भूलते, हमारी मित्र मंडली में गौतम भी था जिसके परिवार में हम लोगों का आना जाना था, वो हमारे परिवार में इतना घुल मिल गया था कि वो परिवार का ही सदस्य लगता । जाड़ों की छुट्टियां हो चुकी थीं, उसने अपनी माँ से कहा कि हम लोग कहीं पिकनिक पर जाना चाहते हैं, उसकी माँ अध्यापिका थीं, बच्चों के मन को समझती थीं उन्होंने सहर्ष अनुमति दे दी और कहा कि सभी लोग अपने घर से कुछ न कुछ बना कर ले जाय जिससे पिकनिक में कई तरह के खानों का आनंद मिल सके । तैय्यारियाँ शुरू हो गई , गौतम के घर से पूडी आलू और पुलाव आने की संभावना बन रही थी, मैंने भी ईजा से कहा कि मैं भी पिकनिक पर जाना चाहता हूँ . ईजा हँस दी और बोली पिकनिक पर क्या ले जाएगा ? मैंने कहा कि पूडी आलू तो गौतम के घर से आ ही रहा है तू कुछ और बना कर दे दे ईजा ने दो पराठे बना कर एक अखबार में लपेट कर मुझे दे दिए , और कहने कगी कि भूख लगाने पर चुपचाप इन्हें खा लेना । केवल दो पराठे वो भी चुपचाप खाने थे ? मैं असमंजस में पड गया और , और तुरंत फैसला लिया, सीढी की जड पर तत्काल ही उन्हें उदरस्त कर गया, ईजा ने देख लिया और चिल्लाई," नै खै जाले छोकरिया,अल्ले मलि कोचि बेर ऐ रौ छे , अब पिकनिक में के खाले, म्यार खोर ? ईजा व्स्तु स्थति को समझ न पाई कि दो ही पराठे दोस्तों के सामने मेरी कितनी हँसी उड़ायेंगे, वो तो गनीमत रही कि बाद में प्रोग्राम ही निरस्त हो गया, यह बात ईजा ने सभी को बताई, बहुत दिनों तक मेरा मजाक उडाया जाता रहा ।
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